तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 2 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
११९२ वां सार -संक्षेप
हम राष्ट्र -भक्त संसार में रहते हुए संसार से असंपृक्त रहने का प्रयास करते हुए आचार्य जी का नित्य वाणी रूपी प्रसाद ग्रहण करते हैं और यह प्रसाद हमें ऊर्जा प्रदान करता है हमें समस्याओं को सुलझाने में सहायता करता है
हमें अपनी इन्द्रियों को नित्य शुद्ध और संयमित करना चाहिए
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।3.42।।
शरीर से परे इन्द्रियाँ कही जाती हैं,इन्द्रियों से परे मन है मन से परे बुद्धि और जो बुद्धि से भी परे है, वह है आत्मा।।
एवं बुद्धेः परं बुद्ध्वा संस्तभ्यात्मानमात्मना।
जहि शत्रुं महाबाहो कामरूपं दुरासदम्।।3.43।।
इस प्रकार बुद्धि से परे आत्मा को जानकर आत्मा (बुद्धि) के द्वारा आत्मा (मन) को वश में करके, हे अर्जुन ! तुम इस दुर्जेय कामरूप शत्रु को मारो।।
अपनी इन्द्रियों से हम विकार ग्रहण न करें यह प्रयास करें
अपने शरीर मन बुद्धि विचार को परिमार्जित करना अत्यावश्यक है
अपने इष्ट का ध्यान करते रहें परमात्मा पर विश्वास रखें विश्वास कारगर होता है उपनिषद् गीता मानस हमें प्रेरणा देते हैं
परिस्थितियों के हिसाब से व्यक्ति के अन्दर भिन्न भिन्न भाव उठते हैं भावहीन विचार प्रभावकारी नहीं होते
इसके अतिरिक्त सेंट जेवियर से कौन आया था भैया पंकज जी भैया मनीष कृष्णा जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया सोहनलाल धर्मशाला का भावुक करने वाला कौन सा प्रसंग था
बुद्धिराक्षस कौन होते हैं जानने के लिए