रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड़ लाहु॥ 32(ख)॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२१० वां* सार -संक्षेप
अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन निदिध्यासन और स्मृतियों के आधार पर,किन्तु अनेक प्रपंचों में फंसने के बाद भी, नित्य आचार्य जी अपना बहुमूल्य समय देकर हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमें इसका लाभ उठाना चाहिए
इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें
जो आत्म की अनुभूति न कर दूसरों की प्रशंसा करने में रत रहता है उसे चारण (भाट ) कहा जाता है रीतिकाल और मध्य काल में यह वृत्ति खूब चली
हम इस चारणी वृत्ति से बचें
और आत्म से संयुत होने के इस सुअवसर का हम लाभ उठाएं पूर्वजन्म के कार्य व्यवहार के साथ वर्तमान के कार्यव्यवहार के आधार पर ही हम यशस्विता पा सकते हैं इस कारण वर्तमान के कार्यव्यवहार पर हम ध्यान दें
हमारे यहां दो अद्भुत अवतार हैं राम और कृष्ण बीच में देवों के महादेव शिव एक विरक्त तत्त्व हैं जो सर्वत्र हैं राम उन्हें पूजते हैं कृष्ण भी उन्हें पूजते हैं
भगवान् राम रमने के लिए अपने गुरु विश्वामित्र के साथ बिना सैनिकों सेवकों को लिए राजभवन से निकले हैं गुरु कई अवसरों पर परीक्षा लेता है वो जानता है कि इनमें क्षमता है ये संकटों से घबराते नहीं हैं
गुरु की शरण में आ गए तो उन पर भगवान् राम पूर्ण विश्वास करते हैं राम सर्वत्र रमते चले गए
भीलों कोलों वानरों भालुओं राजाओं सभी में रमते चले गए सर्वत्र रामत्व व्याप्त हो गया हनुमान जी में भी राम व्याप्त हो गए
कवन सो काज कठिन जग माहीं, जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं, राम काज लगि तव अवतारा, सुनतहिं भयउ पर्बताकारा
राम जब रमते हैं तो ऐसा ही व्यक्तित्व हो जाता है रामकथा अद्भुत है सत्य है जिनके विचार विमल नहीं हैं वही इसे काल्पनिक मानते हैं इसी प्रकार कृष्ण खींचते हैं उनमें एक विशेष प्रकार का आकर्षण है लोग खिंचे चले आते हैं कल्प भेद से राम कृष्ण बन जाते हैं
इसके अतिरिक्त शिक्षा के अभाव में हमारे यहां क्या हानि हुई ज्ञान क्या है कर्तव्य त्यागकर किसमें प्रवेश न करें भैया विभास जी भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी भैया पङ्कज जी भैया मधुकर जी भैया उमेश्वर जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें