भल अनभल निज निज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 22 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२१२ वां* सार -संक्षेप
अध्ययन स्वाध्याय और चिन्तन के पश्चात् आचार्य जी का सदाचार उद्बोधन के रूप में यह अध्यापन कार्य अत्यन्त प्रभावशाली है हमें दिन भर की ऊर्जा प्रदान करने वाले मन
(मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ _अमृतबिन्दुपनिषद्,६/३४ )
पर अंकित होने वाले ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत हैं आइये आज का संप्रेषण सुन आत्मस्थ होने की चेष्टा करें
तुलसीदास जी इस युग के इन परिस्थितियों के दिशादर्शक थे हमारा इतिहास पौराणिक काल के बाद अस्तव्यस्त हो गया
हिंदू धर्म में एक राजा हुआ है वेन जो अपनी दुष्टता और कुशासन के लिए कुख्यात है
विष्णु के प्रति किए गए अपमान से क्रोधित होकर, ऋषियों ने हुं ध्वनि करते हुए पवित्र घास के पत्तों से उसका वध कर दिया था
इसके बाद राजा पृथु शासन में बैठे
इसी कारण धरा पृथ्वी कहलाई
इतने अलौकिक दिव्य सुन्दर स्वरूप वाले भारत में विचारों विकारों का गड्डमड्ड होना दुर्भाग्य है
जड़ चेतन गुन दोषमय बिस्व कीन्ह करतार। संत हंस गुन गहहिं पय परिहरि बारि बिकार॥
जड़ चेतनहि ग्रंथि परि गई। जदपि मृषा छूटत कठिनई॥2॥
जड़ और चेतन में गाँठ पड़ गई। यद्यपि वह मिथ्या ही है, तथापि उसके छूटने में कठिनाई है
हम बन्धनों में जकड़े हुए हैं
रामकथा में इन तत्त्वों का कथात्मक रूप में अप्रतिम विश्लेषण है रामावतार की चर्चा सर्वत्र है रामराज्य ने एक आदर्श हमारे सामने रखा गांधी जी ने भी रामराज्य की कल्पना की
हमें कौन सा मार्ग चुनना है इस पर विचार करें विश्लेषणात्मक दृष्टि रखते हुए मनुष्यों के दोषों को नजरान्दाज कर दें
हमें विशिष्ट व्यक्तियों के गुणों को देखना चाहिए जैसे दीनदयाल जी देर से उठते थे
स्वामी विवेकानंद को तंबाकू खाने की आदत थी आदि विकारों को नहीं
संतत्व की अनुभूति कर
सद्गुण ग्रहण करें दुर्गुणों को न ग्रहण करें मनुष्यत्व की अनुभूति करें प्रयास करें कि अपने अन्दर जड़त्व न आ पाए
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने किन अमितगति की चर्चा की नेहरू जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें