मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
प्रभु सुजस संगति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अंग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 23 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२१३ वां* सार -संक्षेप
स्वार्थ में रत रहने वालों से इतर उत्साहपूर्ण चिन्तन करने वाले जो भी भारत राष्ट्र के प्रति निष्ठावान् हैं जिनमें राष्ट्र -सेवा की ललक है जो समृद्ध सुसंपन्न राष्ट्र की कल्पना कर रहे हैं वे इस तथ्य के प्रति आशान्वित हैं कि शक्तिहीनता एक अवक्रोश है और कलयुग में संगठन ही शक्ति है
*सङ्घे शक्तिः कलौ युगे*
हिंदु युवकों आज का युग धर्म शक्ति उपासना है ॥
बस बहुत अब हो चुकी है शांति की चर्चा यहाँ पर
हो चुकी अति ही अहिंसा सत्य की चर्चा यहाँ पर
ये मधुर सिद्धान्त रक्षा देश की पर कर ना पाए
ऐतिहासिक सत्य है यह सत्य अब पहचानना है ॥
अपने संस्कारों को अपने विचारों से संयुत रखने पर हमारा आचरण संस्कारवान् होगा
शक्ति का संवर्धन और उसका प्रयोग आवश्यक है
यही शौर्य प्रमंडित अध्यात्म है जिसकी आज नितान्त आवश्यकता है कारण स्पष्ट है क्यों इस समय दुष्ट बहुत उत्पात मचा रहे हैं ऐसी ही स्थिति त्रेता युग में भी थी
रावण कुम्भकर्ण आदि का जन्म हो चुका था और
बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥
मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
पराए धन और परस्त्री पर बुरी दृष्टि डालने वाले, दुष्ट, चोर, जुआरी बहुत बढ़ गए । लोग माता-पिता, देवताओं को नहीं मानते थे और साधु संतों से सेवा करवाते थे।
तुलसीदास जी में राष्ट्र के प्रति प्रेम का भाव था उनमें राम के प्रति प्रेम का भाव था क्योंकि उनके मन में राम राष्ट्र के रूप में बैठे थे
यही कथा की भूमिका है
राम भगति भूषित जियँ जानी। सुनिहहिं सुजन सराहि सुबानी॥
कबि न होउँ नहिं बचन प्रबीनू। सकल कला सब बिद्या हीनू॥4॥
भगवान् राम के मन में भी समाज और राष्ट्र सामने झलकता था उन्होंने अपने लिए कुछ नहीं किया
हमारे लिए यही संदेश है कि हमें अपने कर्तव्य का परिपालन संपूर्ण प्रामाणिकता से करना है हमें छल प्रपंच बॆईमानी नहीं करनी है यही रामभक्ति है यही राष्ट्रभक्ति है
आज राष्ट्र का जो भी स्वरूप हो हम उस स्वरूप की आराधना करें जिसमें ऋषि मुनि यज्ञ करके प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते थे मंत्रों के स्वर गूंजते थे धनुर्धारी शक्तिसम्पन्न राजा त्यागवृत्ति से रह रहे थे ऐसा था राम का राज्य
राम राज बैठे त्रैलोका, हर्षित भए गए सब सोका।
इसके अतिरिक्त भगवान् राम के द्वार के भीतर प्रवेश करने के लिए किसकी आज्ञा आवश्यक है आचार्य जी ने वर्तमान युगभारती के प्रथम अध्यक्ष भैया राजेश पांडेय जी की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें