प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२१६ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों को सुनने के पश्चात् एक गम्भीर चिन्तन का विषय सामने आ जाता है कि अत्यन्त विलक्षण हमारी आर्ष परम्परा विलुप्त क्यों हो गई
इसका कारण शिक्षा में आई विद्रूपता है हमें अब सचेत जागरूक हो जाना चाहिए निश्चित रूप से हमारी आर्ष परम्परा विशिष्ट है अद्वितीय है
यह भारत की समृद्ध संस्कृति का एक अहम भाग है ऋषियों की प्रज्ञा और परंपरा ने विश्व को सन्मार्ग की दिशा दिखाई
ऋषि ज्ञान का अद्भुत कोश है ज्ञान का वह प्रवक्ता है और परोक्षदर्शी भी है उसके पास दिव्य दृष्टि होती है वह ज्ञान के माध्यम से मन्त्रों को अथवा संसार की चरम सीमा का अवलोकन करता है
इनके अनेक प्रकार है जैसे महर्षि राजर्षि देवर्षि आदि
"ऋषयो मन्त्रद्रष्टारः कवय क्रान्तदर्शिन: ..!"
ऋषि क्योंकि ज्ञानी हैं इस कारण वे परेशान नहीं हैं जब कि
सुर मुनि गंधर्बा मिलि करि सर्बा गे बिरंचि के लोका।
सँग गोतनुधारी भूमि बिचारी परम बिकल भय सोका॥
ब्रह्माँ सब जाना मन अनुमाना मोर कछू न बसाई।
जा करि तैं दासी सो अबिनासी हमरेउ तोर सहाई॥
देवता मुनि गंधर्व परेशान हैं
वे ब्रह्म-लोक गए। भय और शोक से अत्यंत व्याकुल धरा भी गाय का रूप धरे उनके साथ थी ब्रह्मा जी सब जान गए। उन्होंने मन में अनुमान लगाया कि इसमें मेरा कुछ भी वश नहीं चलेगा उन्होंने पृथ्वी से कहा कि जिसकी (अर्थात् विष्णु की) तू दासी है, वही अविनाशी परमात्मा विष्णु हमारा और तुम्हारा दोनों का सहायक है।
हमारी वैष्णवी शक्ति अद्भुत है राम इसके अवतार हैं तुलसीदास जी तो कहते हैं ब्रह्म ही सीधे अवतरित होकर राम के रूप में आये हैं
बालकांड में ये सब सांकेतिक रूप में है सृष्टि क्या है उसकी रचना कैसे हुई आदि
बहुत सारी घटनाओं के कारण भगवान् अवतार लेते हैं वे कल्याण के लिए अवतार लेते हैं हम सभी में ईश्वरत्व है कुछ अंश में ही सही
ईश्वर की अद्भुत लीला के अनेक उदाहरण हैं हमें इन पर विश्वास करना चाहिए ईश्वरत्व की अनुभूति जो व्यक्ति अपने भीतर करने लगते हैं उनका जीवन सांसारिक प्रपंचों में फंसने के बाद भी समस्याओं का समाधान खोज लेता है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया
अभ्यास किसी भी चीज का चाहे वह अध्ययन लेखन पूजन चिन्तन प्रवचन या भजन का हो यदि हमें रुचता है तो वह कल्याणकारी है
विधाता के विषद संसार का विस्तार अद्भुत है
यहाँ हर एक कण के साथ ही चैतन्य संयुत है,
मगर अनुभूति का अभ्यास जिनको भी नहीं होता
उन्हें "भयकर जगत " यह विश्व विश्रुत है।
करपात्री जी संकटा प्रसाद जी डा वाजपेयी जी का उल्लेख क्यों हुआ
भैया त्रिलोचन जी भैया अरविन्द वाजपेयी जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें