प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 27 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२१७ वां* सार -संक्षेप
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥
मानस की इस अद्भुत चौपाई का आशय यह है कि भगवान् राम के नाम का मुखर जप या मौन जप परम कल्याणकारी है
क्योंकि उनके कृत्स्न कार्य दोषरहित हैं सकारण भी हैं
उनका जीवन व्यक्ति के लिए मात्र चिन्तन का नहीं आचरण का जीवन है
तुलसीदास जी ने उनके जन्म से लेकर कर्म तक को कथा के रूप में प्रस्तुत किया है उनके समापन का उल्लेख उस कथा में नहीं है क्यों कि परमात्मा का समापन नहीं होता है
अंधेरे में भटके संवेदनशील लोगों को राह दिखाने वाले इस ग्रंथ में जिस प्रकार तुलसीदास जी ने राम का जीवन प्रस्तुत किया है वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है
रघुबर कीरति सज्जननि सीतल खलनि सुताति।
ज्यों चकोर चय चक्कवनि तुलसी चाँदनि राति।194
इसमें दो पक्षियों का उल्लेख हुआ है चकवा और चकोर
चकवा जिसे रात्रि अच्छी नहीं लगती जब कि चकोर को चांदनी रात बहुत अच्छी लगती है दोनों ही पक्षी हैं इसी प्रकार भक्त और दुष्ट दोनों ही मनुष्य हैं भक्त में मनुष्यत्व होता है
दुष्ट में मनुष्यत्व नहीं होता है रावण इस कारण मर नहीं रहा है क्यों कि शक्ति उसे अपनी गोद में लिए बैठी है
दुष्टों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए आज भी हम राष्ट्र भक्तों को सात्विक शक्ति की आवश्यकता है जिसमें रामात्मकता आ जाए तो अत्यन्त प्रभावशाली होती है
आचार्य जी ने यह भी बताया सभी प्राकृतिक शक्तियां देव रूप में हैं जिनको इनकी अनुभूति होती है वे इससे लाभान्वित भी होते हैं
इसके अतिरिक्त किसमें कुष्ठ के लक्षण प्रकट हुए थे
राजनीति की क्या दशा है रामकथा की भूमिका क्या है ईश्वर क्यों आता है भैया पंकज जी को आचार्य जी क्या भेज रहे हैं रामात्मक शक्ति के क्या लाभ हैं जानने के लिए सुनें