30.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 30 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२० वां* सार -संक्षेप

 जागते रहो भारती भाव के विश्वासी

अँधियार घेर कर बढ़ता आता चतुर्दिशा

वैभव की सीमा नहीं अभावों का न अन्त 

जाग्रत विवेक से भाँप बढ़ें पग उषा निशा ।

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष चतुर्दशी/अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 30 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२० वां* सार -संक्षेप



भगवान् शङ्कराचार्य का जन्म ऐसे समय में हुआ जब भारत में विषम स्थितियां थीं वैदिक सनातन धर्म अनेक प्रापंचिक कर्मकांडों में उलझ गया था धर्म कर्म विवाद चरम पर थे 

ऐसे महापुरुष  ईश्वर का अंश लेकर अवतरित होते हैं और अपनी शक्ति बुद्धि विचार के अनुसार अंधकार दूर कर देते हैं इन्हीं महापुरुषों के कारण हमारा सनातनत्व अनेक झंझावातों को झेलने के बाद भी विनष्ट नहीं हुआ

शङ्कराचार्य कहते हैं कि भक्ति ज्ञानोत्पाद का प्रधान साधन है भक्ति और शक्ति एक हैं 

मोहम्मदी चिन्तन, जिसमें माना जाता है कि ईश्वर के अतिरिक्त और कुछ नहीं है और इसे जो नहीं मानता उसे नष्ट कर दो, में और सनातनत्व में भेद है


किसी भी विचार को काटने के लिए उससे अधिक सशक्त विचारों की जरूरत पड़ती ही है


हम लोगों का आज का युगधर्म शक्ति उपासना है शिव और शक्ति की विशिष्टता अवर्णनीय है

हमें जानना चाहिए कि शक्ति क्या है 

प्रत्येक संप्रदाय के उपास्य देव की एक शक्ति है वह देव उस शक्ति से ही संसार का संचालन करता है भगवान् कृष्ण ने अपनी द्विधा प्रकृति माया की चर्चा अनेक बार की है


राधाकृष्ण, शिवाशिव ,लक्ष्मीनारायण, सूर्यसावित्री, सीताराम आदि अनेक उदाहरण हैं जो सिद्ध करते हैं कि शक्ति और तत्त्व का सम्मिश्रण अद्भुत है हमें ये सब जानकर नई पीढ़ी को भी इन सबसे अवगत कराना चाहिए ताकि वह केवल उदरपूर्ति में ही व्यस्त न रहे हमें आत्मस्थ भी होना चाहिए केवल धन की ही चर्चा गलत है 

संसार के प्रपंचों की सीमा नहीं है हमें अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए

केवल पुत्र को संतान को पैसा कमाने की machine बनाना गलत है पुत्र को किस प्रकार प्रकट किया जाए तो बालकांड में है 


सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा। पुत्रकाम सुभ जग्य करावा॥

भगति सहित मुनि आहुति दीन्हें। प्रगटे अगिनि चरू कर लीन्हें॥

ऋषि वशिष्ठ ने श्रृंगी ऋषि को बुलवाया और उनसे शुभ पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज कौन सी कविता सुनाई जिसमें दशरथ यह भूल गए कि  वे शम्बरारि भी थे का उल्लेख है आचार्य श्री जे पी जी का कौन सा प्रसंग बताया 

जानने के लिए सुनें