हो एकत्रित किसी बहाने हिन्दुभाव के नाते
तभी सुरक्षित रह पायेंगे घर के रिश्ते नाते
हिन्दू हिन्दुस्थान सनातन धर्म
व चिन्तन ही है
इसके लिए शक्ति संवर्धन और संगठन भी है
हम संगठित तभी होंगे जब अपनों को जानेंगे
उनके सुख-दुख लाभ-हानि
को मन से पहचानेंगे
केवल बातें नहीं करें उतरें नित -
प्रति अपनों के हित
अपने वे जो भरतभूमि भारतमाता से गर्वित
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अमावस्या विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 1 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२२१ वां* सार -संक्षेप
आज के संप्रेषण में सिद्धान्तों और सनातनधर्मिता पर आधारित व्यावहारिक तथ्य हैं जो हम संवेदनशील लोगों को उत्साहित करेंगे
राजनैतिक और सामाजिक दृष्टि से बहुत से ऐसे कार्य और व्यवहार हैं जो हमें अखर रहे हैं किन्तु हम इसके निदान के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं केवल विचारमग्न रहने से और दोषारोपण से काम नहीं चलेगा हमें अपने स्तर से काम करना होगा
शक्ति -उपासना सदैव का युगधर्म है
शौर्य पराक्रम अत्यन्त आवश्यक है
शक्तिसम्पन्न व्यक्ति प्रभाव डालता है शक्तिहीन व्यक्ति अप्रभावी होता है
शक्तिसंवर्धन करें स्वभाव में परिवर्तन लाएं किसी के सामने किसी की निन्दा न करें न अपमान
विकारों से बचें अपने संगठन का आकलन करें परिस्थितियों का सदैव ध्यान रखें भावी लक्ष्य के लिए वर्तमान में लिप्त रहें
नई पीढ़ी के लिए उदाहरण बनें
आत्मीयता और प्रेम के आधार पर संगठन विकसित होता है यदि हमें लोगों को एकत्र करना है तो अपने भीतर चुम्बकीय आकर्षण उत्पन्न करना होगा अपने अन्दर विशालता अत्यावश्यक है संघ का विस्तार इसी आधार पर हुआ है संघ का प्रभाव अद्भुत है संघ में लोकसंग्रह और लोक संस्कार पर विशेष बल दिया गया
अच्छा व्यक्ति जब बड़े लोगों की संगति पाता है तो समाज के लिए कल्याणकारी होता है
इसके लिए आचार्य जी ने समुद्र और शीशे की सूर्य से संगति का उदाहरण दिया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया माता पिता जब अपने बच्चे की निन्दा करें तो हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें