4.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण ११९४ वां सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर )  4 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  ११९४ वां सार -संक्षेप



श्रीरामचरित मानस में उत्तर कांड का विशेष महत्त्व है 


केकीकण्ठाभनीलं सुरवरविलसद्विप्रपादाब्जचिह्नं

शोभाढ्यं पीतवस्त्रं सरसिजनयनं सर्वदा सुप्रसन्नम्‌।

पाणौ नाराचचापं कपिनिकरयुतं बन्धुना सेव्यमानं।

नौमीड्यं जानकीशं रघुवरमनिशं पुष्पकारूढरामम्‌॥1।


मोर के कण्ठ की आभा के समान  नीलवर्ण, देवों में श्रेष्ठ, ब्राह्मण के चरणकमल के चिह्न से सुशोभित, शोभा से परिपूर्ण, पीत-अम्बरधारी, कमल नेत्र, सदैव प्रसन्न, हाथों में बाण व धनुष धारण किए हुए, वानर समूह से युक्त भ्राता लक्ष्मण जी से सेवित, स्तुति किए जाने योग्य, मां जानकी  के पति, रघुकुल श्रेष्ठ, पुष्पक विमान पर सवार श्री रामचंद्र जी को मैं निरंतर नमस्कार करता हूँ


इसके बाद उत्तरकांड में वर्णित है 


श्री राम जी के लौटने की अवधि का एक ही दिन शेष रह गया तो अयोध्यावासी बहुत आतुर हो रहे हैं। राम के वियोग में दुबले हुए स्त्री-पुरुष जहाँ-तहाँ विचार कर रहे हैं कि श्री रामजी क्यों नहीं आए


फिर रामराज्य का वर्णन है उसके पश्चात् ऋषियों देवताओं के प्रश्नोत्तर हैं अन्त में भरत के प्रश्नोत्तर हैं 

और उसके बाद गरुड़ जी की स्थिति को दर्शाया है 

उनका भ्रम दर्शाता यह सोरठा देखिए 


मोहि भयउ अति मोह प्रभु बंधन रन महुँ निरखि।

चिदानंद संदोह राम बिकल कारन कवन॥68 ख॥


युद्ध में प्रभु का नागपाश - बंधन देखकर मुझे अत्यंत मोह हो गया था कि श्री राम जी तो सच्चिदानंद हैं फिर वे किस कारण व्याकुल हैं


फिर उनका संशय दूर हो जाता है

ऐसे ही बहुत से लोग ये काल्पनिक मानते हैं मनुष्य रूपेण मृग विशेष रूप से 

कलियुग में ऐसे लोभी लंपटों की तो भरमार है 

अद्भुत है संसार 

हम सनातनधर्मी ये सब सत्य मानते हैं 


भगत हेतु भगवान प्रभु राम धरेउ तनु भूप।

किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥ 72 क॥

भक्तों के लिए ही भगवान ने साधारण मनुष्य के रूप में ऐसी लीलाएं अनेक बार की हैं 


परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥


हम सब नर उन्हें साधारण नर समझ लेते हैं तो हमारा भ्रम बहुत भयानक हो जाता है 



निर्गुन रूप सुलभ अति सगुन जान नहिं कोई।

सुगम अगम नाना चरित सुनि मुनि मन भ्रम होई॥ 73 ख॥


निर्गुण रूप अत्यंत सुलभ है, परंतु दिव्य सगुण रूप को कोई नहीं जानता, इसलिए उन सगुण भगवान के अनेक प्रकार के सुगम और अगम चरित्रों को सुनकर मुनियों के भी मन को भ्रम हो जाता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने Third Way की चर्चा क्यों की भैया राजेश गर्ग जी का नाम क्यों आया 'कुछ भी लिखो' किसने कहा एक सप्ताह का कौन सा कार्यक्रम बनाया जा सकता है जानने के लिए सुनें