प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११९५ वां* सार -संक्षेप
संसार का चक्र अत्यन्त अद्भुत है और सामान्य बुद्धि की समझ से परे है जब भक्त, जो परमात्मा का ही अंश है,की बुद्धि संसार की विचित्रता देखकर काम नहीं करती तो वह शरणागत हो जाता है
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥'
वह सच्चिदानंदघन परब्रह्म पुरुषोत्तम परमात्मा सभी प्रकार से सदा सर्वदा परिपूर्ण है। यह जगत् भी उस परब्रह्म से पूर्ण है, क्योंकि यह पूर्ण उस पूर्ण पुरुषोत्तम से ही उत्पन्न हुआ है।
इस मन्त्र का प्रारम्भ ॐ से हो रहा है यह ॐ वह आदिस्वर है जो परमात्मा की भावभूमि से उत्पन्न होकर उसकी वैखरी से प्रकट हुआ है
परमात्मा का अस्तित्व मनुष्य की कल्पनाओं में ही संभव है तिर्यग्योनि के लिए असंभव
जो इस काल्पनिक तत्त्व को प्राप्त करने के पश्चात् भी उस कल्पना जगत में प्रवेश नहीं कर पाता वो मनुष्य के रूप में पशु ही है
संसार असार इस कारण है क्योंकि वह परिवर्तनशील है जब कि परमात्मा अपरिवर्तित रहता है
जो कुछ है वह परमात्मा से व्याप्त है उसका *त्यागपूर्ण उपभोग* करना चाहिए
आचार्य जी ने इसके लिए मकानमालिक और किरायेदार का उदाहरण दिया यह संसार किराये के मकान की तरह है और उसका मकान मालिक परमात्मा है
जाते समय कोई विवाद नहीं खड़ा करना यही ईश्वरत्व है ब्रह्मत्व है
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेत् शतं समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे ॥
आचार्य जी ने भौतिकवादियों और अध्यात्मवादियों में अन्तर बताया और
ईशावास्योपनिषद् को पढ़ने का परामर्श दिया जिसके सारे छंद हम याद कर सकते हैं
संसार के संकट हमारे विलाप करने से दूर नहीं हो सकते
इसके अतिरिक्त भैया विनय अजमानी जी का उल्लेख क्यों हुआ रामकथा सुनाने के लिए आचार्य जी क्या अपेक्षा कर रहे हैं विद्यालय में स्थित हनुमान जी की मूर्ति के विषय में आचार्य जी ने क्या बताया जानने के लिए सुनें