प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 6 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*११९६ वां* सार -संक्षेप
अध्ययन, स्वाध्याय,चिन्तन, मनन के साथ निदिध्यासन की प्राप्ति होने पर मनुष्य ज्ञान स्वरूप हो जाता है लेकिन अपने शरीर मन बुद्धि विवेक विचार चैतन्य के साथ हमें जो मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है उसमें इस भाव को ग्रहण करना कठिन लगता है गुरु हमारा अंधकार दूर करता है भारत देश तो ऐसा है जिसमें मिट्टी की मूर्ति में भी गुरुत्व का वरण हो जाता है भक्त का भाव देखिए
भक्त को मूर्ति में ही साक्षात् इष्ट दिखाई देता है
भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥ सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥
नाम का जप
(मानस,उपांशु,वाचिक, जिह्वा,नित्य,नैमित्तिक,काम्य, निषिद्ध,प्रायश्चित,अचल आदि जप के प्रकार हैं )
भी अद्भुत भाव बोध है
यह चौपाई मानस के बाल कांड से है
तुलसीदास जी ने बहुत अध्ययन किया
वाल्मीकि जी से तुलना की जाए तो तुलसीदास जी हमारे अधिक निकट हैं उनकी रचना मानस
रामायण,अनेक पुराणों में निहित ज्ञान का अमृत है इसमें वेदों, शास्त्रों और उपनिषदों का भी सार है।इसमें सबसे प्रमुख बात है कि अपने सुख के लिए उन्होंने मानस की रचना की
जिससे अपने मन को शान्ति मिले ऐसी बात जब कही जाए तो वह अधिक प्रभावकारी होती है
उन्हें श्री राम के चरित्र में शान्ति मिली
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया विनय जी,मोटवानी जी का नाम क्यों लिया पद्म पुराण के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश एक हैं या तीन हैं
किसी एक तत्त्व पर पहुंचने के लिए हमें क्या करना चाहिए
*वो बात कहां से लाओगे* किसने कहा था आगामी रविवार की बैठक की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें