7.11.24

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 7 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९७ वां* सार -संक्षेप


सर्वप्रथम हम यह सीखने का प्रयास करें कि हम परमात्मा का अंश हैं

परमात्म शक्ति आत्मशक्ति के अनेक स्वरूप इस संसार में स्थापित कर देती है यह अनुभूति जब हमें होने लगेगी तो तुरन्त ही इस भाव में हम पहुंच जाएंगे 


न तो मैं मन हूँ, न बुद्धि या अहंकार,

न तो मैं सुनने की इंद्रियाँ हूँ, न ही चखने  सूँघने  या देखने की इंद्रियाँ हूँ,

न तो मैं आकाश हूँ, न पृथ्वी, न अग्नि और न ही वायु,

मैं नित्य शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ; मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ,

नित्य शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ

यह भाव अद्भुत है तभी कवि कहता है 

मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान

मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान


आचार्य जी  वाचिक संवाद द्वारा नित्य यही प्रयास करते हैं कि यह भाव हम सबके मन में आए और हम लोग एक रूप होकर भारत के रूप में परमात्मा प्रदत्त जो प्रसाद हमें मिला है उसमें रहने का आनन्द प्राप्त करें अपने मन को चंगा करने का यह सुअवसर न गवाएं 

आचार्य जी परामर्श देते हैं कि हम  पढ़ने सुनने के साथ धारण करने की अपनी क्षमता को विकसित करें जैसे ॐ आदिस्वर है मनुष्य क्यों अद्भुत है आदि विषय बहुत विस्तार चाहते हैं जो अध्ययन स्वाध्याय चिन्तन मनन द्वारा संभव है अंग्रेजी के कारण हमें जो भ्रम और भय हो गया है उससे बाहर निकलने का प्रयास करें 

श्री और सिया एक  है या अलग अलग, चहबच्चा ज्ञान -सिन्धु कौन मान रहा है,भैया विनय जी भैया मनीष जी की चर्चा क्यों हुई,क्या सारे दर्शन एक हैं, समन्वय सिद्धान्त के अनुयायी कौन थे धर्मान्तरित लोगों को वापस लाने का कार्य किसने किया जिसके कारण कबीर को कहना पड़ा 

सतगुरु हम सूँ रीझि करि, एक कह्या प्रसंग। 


बरस्या बादल प्रेम का, भीजि गया सब अंग॥


शिवाजी और मेंढकी का क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें