8.11.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 नवम्बर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *११९८ वां* सार -संक्षेप

 अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव।


मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन् सिद्धिमवाप्स्यसि।।12.10।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 8 नवम्बर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *११९८ वां* सार -संक्षेप


आचार्य जी का प्रारम्भ से ही प्रयास रहा है कि हमारा विकास हो सके हमारे अन्दर राष्ट्र के प्रति भक्ति का भाव जाग्रत हो सके हमारे अन्दर वह भाव भर सके कि दीनदयाल सरीखे अजातशत्रु दुष्टों के द्वारा मार क्यों दिए जाते हैं

हमारे अन्दर राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण वह शक्ति आ जाए कि दुष्ट हमसे थर्राने लगें वे हिम्मत न दिखा सकें

सनातन धर्म श्रेयस्कर है यह जान सकें 

भारत के रूप में परमात्मा ने जो प्रसाद दिया है उसमें निवास करने का आनन्द प्राप्त कर सकें गर्व कर सकें


और इसके मार्ग निकलते गए 

हनुमान जी की प्राण प्रतिष्ठा हुई , तत्पश्चात् नित्य पूजन होने लगा , सदाचार वेलाएं चलने लगीं

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि इस कलियुग में राम नाम का जप जो अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है को हम लोग करते रहें तो अनेक खुराफातों से हम बच सकेंगे हमें समस्याओं के समाधान मिलने लगेंगे 


राम जपु, राम जपु, राम जपु, बावरे ।


घोर-भव नीर-निधि नाम निज नाव रे ॥१॥


एक ही साधन सब रिद्धि सिद्धि साधि रे ।


ग्रसे कलि रोग जोग संजम समाधि रे ॥२॥


कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा"


इसका अभ्यास करें 

क्योंकि अभ्यास बहुत महत्त्वपूर्ण है 

अभ्यास से क्या नहीं किया जा सकता 

असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं।


*अभ्यासेन तु कौन्तेय* वैराग्येण च गृह्यते।।6.35।


अभ्यास से तो चञ्चल मन को भी वश में किया जा सकता है


अभ्यासेन क्रियाः सर्वाः अभ्यासात् सकलाः कलाः ।

अभ्यासात् ध्यानमौनादिः किमभ्यासस्य दुष्करम् ॥



अबन्धुर्बन्धुतामेति नैकट्याभ्यासयोगतः।




अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना।


परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन्।।8.8।।

 अर्जुन से भगवान् कह रहे हैं 


 अभ्यासयोग से युक्त अन्यत्र न जाने वाले चित्त से निरन्तर चिन्तन करता हुआ साधक परम दिव्य पुरुष को प्राप्त होता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष जी भैया विनय जी का नाम क्यों लिया रामभद्राचार्य जी एक चौपाई पर कितने समय तक बोल सकते हैं वह कौन सा प्रसंग था जिसके कारण आचार्य जी को रामकथा कहने का अभ्यास हो गया, आचार्य जी ने किनसे कहा कि किसी भी चौपाई का अर्थ पूछ लें जानने के लिए सुनें