प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 10 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३० वां* सार -संक्षेप
जीवन की एक व्याख्या होती है हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर रहे हैं संबन्धों का निर्वाह कर रहे हैं अपने यश की कामना कर रहे हैं जीवन में सार और असार में एक सामञ्जस्य बनाए हुए हैं तो यह भी एक विशिष्ट व्याख्या है संबन्धों का विस्तार निरर्थक नहीं है हमें संबन्धों के विस्तार पर ध्यान देना चाहिए और इसके लिए सभी से उचित व्यवहार अनिवार्य है जो हमारी आयु के समान नहीं हैं उनसे उनके स्तर पर जाकर व्यवहार करना चाहिए
पारस्परिक संबन्धों से भाग्य बनते हैं आज का कर्म आने वाले समय का भाग्य बनता है
समुद्रमथने लेभे हरिः, लक्ष्मीं हरो विषम्।
भाग्यं फलति सर्वत्र ,न च विद्या न पौरुषम्।।
अर्थात् भाग्य का ही फल सभी जगह मिलता है, विद्या और उद्योग का नहीं
जो हमने परिश्रम किया है उसी के अनुरूप परिणाम मिलेगा
जो हमारे भाग में है अर्थात् हमारे हिस्से में है वही भाग्य है
आचार्य जी ने काव्य का महत्त्व बताया हम सबके अन्दर काव्य है किसी का प्रकट होता है किसी का नहीं इस कारण लेखन और गम्भीर विचार महत्त्वपूर्ण हैं
काव्य छंदरहित भी हो सकता है बुद्धिमान जनों का समय काव्यशास्त्र में व्यतीत होता है
काव्यं यशसे अर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये। सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेशयुजे ll
परिस्थितियों के बारे में विचार करके जब हम समस्याओं के हल तलाश लेते हैं और जब वे हल समाज के लिए लाभकारी होते हैं तो हम आनन्दित होते हैं
आचार्य जी ने मनुष्य के रूप में जानवर कौन हैं यह भी बताया
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी भैया बृजेश वाजपेयी जी भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया काव्यानन्द क्या है जानने के लिए सुनें