प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 9 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२२९ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है आचार्य जी से प्राप्त विचार हमें लाभ पहुंचाते हैं गहराई से किए अध्ययन और स्वाध्याय के अभ्यास का भी लाभ होता है
उचित विचार हमें अवलम्बन और सांसारिक प्रपंचों से जूझने की शक्ति देते हैं और हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर पाते हैं
अध्ययन स्वाध्याय के साथ चिन्तन मनन ध्यान धारणा हमारी सुप्त शक्तियों को जाग्रत करते हैं
हमारा देश अद्भुत है
ज्ञान और भक्ति के समन्वय को प्रदर्शित करती इस देश की अद्भुतता दर्शाती ये पंक्तियां देखिए
हमारा देश भास्वर भक्ति का
प्रतिमान है स्वर है
इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है
न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को
वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।
जब हमारे भीतर अच्छे विचार आएंगे तो समझ में आयेगा कि ऐसा धन कमाना व्यर्थ है जो हमें शान्ति न दे सके, हमें संगठन का महत्त्व समझ में आएगा दीनदयाल जी द्वारा छोड़े गए भारत राष्ट्र को समर्पित करने वाले तपस्या के तेजस को अपने भीतर प्रवेश कराने की क्षमता आएगी, चैतन्य को जाग्रत करते हुए धन कमाना अच्छा लगेगा
आचार्य जी ने पद्मपुराण की चर्चा की किस युग में कौन से वर्ण तपस्या कर सकते हैं इसमें यह समझाया गया है
कलियुग में तो जप ही तप है और जप एक अभ्यास है
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रुपयों से भरी अलमारी वाला कौन सा प्रसंग बताया श्री प्रयाग जी आचार्य जी को किसने रुपयों की गड्डी दे दी थी
एक ही सत्य को विप्र कई नामों से पुकारते हैं वाला छंद कौन सा है
आदि जानने के लिए सुनें