प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 12 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३२ वां* सार -संक्षेप
नित्य इन सदाचार संप्रेषणों को प्रेषित करने का उद्देश्य यह रहता है कि हम अपने शरीर को साधें मन को बांधें सद्विचारों को प्रसारित करें अपने विश्वासों को सुदृढ़ करें
शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलंबन और सुरक्षा नामक इन चार सिद्धान्तों के आधार पर हम अपना संगठन युगभारती चलाते हैं जिसमें शिक्षा मूल है
हम सभी शिक्षक के रूप में है हमें शिक्षकत्व की अनुभूति होनी चाहिए हमें उचित शिक्षा का बोध होना चाहिए
शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो शक्ति उत्पन्न करे विचारशीलता का बोध कराए जब कि हमारे ऊपर ऐसी शिक्षा थोपी गई जिससे हमने शक्तिहीनता अक्षमता का अनुभव किया हमें अपना ही साहित्य खराब दिखने लगा अपनी भाषा में दोष दिखने लगे जब कि हमारी शिक्षा ऐसी होनी चाहिए थी जिससे हम शक्ति की अनुभूति कर सकें क्योंकि आज का युगधर्म भी शक्ति उपासना है और शक्तिहीनता से हमारे अन्दर बेचारगी आती है शक्ति का अर्थ मात्र भुजाओं की शक्ति ही नहीं है अपितु अपने मनुष्यत्व की अनुभूति वाली शक्ति है और यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है अध्यात्म में भी शक्ति महत्त्वपूर्ण है
परमात्मा शिव के साथ शक्ति का ही संयमन कर सृष्टि रचता है
शिक्षा संयम स्वाध्याय संकल्प सनातन स्वाभिमान
संतोष सरलता शुचिता मुदिता गरिमामय देशाभिमान
शिक्षा उत्साह उमंगों वाली आदिशक्ति की अमरकथा
सम्पूर्ण सृष्टि की जटिल समस्या सुलझा हरती सभी व्यथा
शिक्षित होकर भी जो पीड़ित व्यथित निराश्रित रहता है
अपने दुःखों अभावों को हरदम अपनों से कहता है
सचमुच ही वह निरा अशिक्षित अक्षरबोधी -मानव है
तन से मानव भले दिखे वह सचमुच में ही दानव है l
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आज ईशोपनिषद् की चर्चा क्यों की
रामगोविन्द जी सलिल विश्नोई जी देवकी पैलेस वाले शर्मा जी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें