प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 13 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३३ वां* सार -संक्षेप
नित्य इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी हमारी छिपी हुई शक्तियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं
अपने परिवार अपने परिवेश अपनी उलझी हुई परिस्थितियों अपने शरीर को विस्मृत कर यदि कुछ क्षण हम परमात्मशक्ति की अनुभूति कर लें तो यह हमें अत्यन्त आनन्द की अनुभूति कराएगी
क्योंकि सत्य यही है कि जड़-चेतन प्राणियों वाली यह समस्त सृष्टि परमात्मा से ही व्याप्त है
अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
अद्भुत व्यक्तित्व वाले तुलसीदास जी सभी प्रकार की सांसारिक और संसारेतर परिस्थितियों का सामना कर चुके हैं
सामान्य भाषा में रचित असामान्य ग्रंथ मानस की रचना करते समय उन्हें राम के स्वरूप में संपूर्ण ब्रह्माण्ड का रहस्य दृष्टिगोचर हो गया
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा। हरषु बिषादु न कछु उर आवा॥
हृदयँ न हरषु बिषादु कछु बोले श्रीरघुबीरु
नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
साक्षात् धर्म के विग्रह भगवान् राम के मन में न हर्ष था न विषाद चाहे वनगमन का समय हो चाहे धनुषभंग का समय हो
ऐसे राम को भूल जो काम में मस्त रहे तो वह अभागा ही है
मानस का अयोध्या कांड अद्भुत है संसार की पूरी कथा का यथार्थ वर्णन है
इसी में एक प्रसंग है
जब भगवान् राम को वनगमन का आदेश मिलता है
धरम धुरीन धरम गति जानी। कहेउ मातु सन अति मृदु बानी॥
पिताँ दीन्ह मोहि कानन राजू। जहँ सब भाँति मोर बड़ काजू॥3॥
मां कौशल्या का अद्भुत चरित्र सामने आता है
जौं केवल पितु आयसु ताता। तौ जनि जाहु जानि बड़ि माता॥
जौं पितु मातु कहेउ बन जाना। तौ कानन सत अवध समाना॥1॥
ऐसी माताएं आज भी इस धरती पर हैं जो अपने पुत्रों को सेना में भेज देती हैं
ऐसे अनेक मार्मिक प्रसंग हैं इस कांड में
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी का कौन सा प्रसंग बताया मानस में आचार्य जी ने और क्या बताया तुलसीदास जी और हनुमान जी क्या एक ही हैं जानने के लिए सुनें