प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्दशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 14 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३४ वां* सार -संक्षेप
इस समय उथल पुथल मची हुई है लेकिन हम राष्ट्र -भक्तों
( विध्वंसों का ताण्डव फैला हम टिके सृजन के हेम -शिखर ।
हम मनु के पुत्र प्रतापी हैं वर्चस्वी धीरोदत्त प्रखर।)
ने यदि अपना लक्ष्य निर्धारित कर लिया है तो इस उथल पुथल से कोई अन्तर नहीं पड़ने वाला हम अपने लक्ष्य तक अवश्य पहुंचेंगे
ये उथल-पुथल उत्ताल लहर पथ से न डिगाने पायेगी।
पतवार चलाते जायेंगे मंजिल आयेगी-आयेगी॥
पतवार चलाना अनिवार्य है हमें भ्रमित नहीं होना है
जब हम अपना आत्मबोध समाप्त कर लेते हैं तो दोषारोपण करते हैं और हानि पहुंचाते हैं
आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपनों से तो मिलें ही लेकिन नए लोगों के संपर्क में भी आएं जो हमारे अनुकूल लगें यही संगठन का विस्तार है
हमारे देश की शक्ति इधर उधर बिखरी हुई है
ऐसे में निराश न होकर अपने कर्म अपने धर्म का ध्यान रखें सर्वप्रथम हम अपने से सावधान रहें यही वरिष्ठ मूलमन्त्र है हम ध्यान रखें कि हमारी तार्किकता हमारी शक्ति हमारे विचार हमारा चिन्तन मनन राष्ट्रोन्मुखी ही रहे
यहां पर संगठन महत्त्वपूर्ण हो जाता है संगठन और भीड़ में अन्तर है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की संगठन के रूप में शक्ति हम देख ही रहे हैं
युगभारती एक संगठन है जिसमें प्रेम आत्मीयता अनिवार्य है हम ध्यान दें कि यह संगठन भी एक शक्ति बने और अंधकार दूर करे
हमारी शिक्षा आत्मबोधी होनी चाहिए
हम अपना जीवन चक्र विचारों के साथ सशक्त बनाएं
धार्मिकता क्या है भगवान् राम धर्म के विग्रह कैसे हैं
ओमेन्द्र् जी क्या कर रहे हैं हसनगंज की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें