प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 15 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३५ वां* सार -संक्षेप
हमारा देश भास्वर भक्ति का
प्रतिमान है स्वर है
इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है
न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को
वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।
हमें निजघर नहीं भूलना है अर्थात् हमें अपना अस्तित्व नहीं भुलाना है
हमने दीनदयाल जी की अधूरी यात्रा को पूर्ण करने का संकल्प लिया है
हमारा विद्यालय भारतीय विचार दर्शन को आगे बढ़ाने के लिए और भारत राष्ट्र को सशक्त समृद्ध वैभवशाली बनाने का प्रयास कर रहे
दीनदयाल जी की अपूर्ण कामना को पूर्ण करने के लिए खुला और इस कारण हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम राष्ट्रोन्मुखी समाजोन्मुखी जीवन जिएं
जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं वह हृदय नहीं है पत्थर है......
जितनी भौतिकता में वृद्धि होती है भाव उतना ही विलुप्त होने लगता है फिर संसार दिखाई देने लगता है प्रदर्शन में रुचि हो जाती है सार से दूरी बन जाती है जब तक भावमय संसार अस्तित्व में रहता है मनुष्य मनुष्यत्व के आनन्द की अनुभूति करता रहता है
हम मनुष्यत्व की अनुभूति कर सकें संसार के साथ साथ सार को भी समझने का प्रयास कर सकें हम इन सदाचार संप्रेषणों का आश्रय ले सकते हैं
इनका श्रवण एक अच्छा कार्य है यदि हम किसी एक भी अच्छे कार्य को करने की ठान लें और तय कर लें कि कैसी भी विषम परिस्थिति आए हम उसे नहीं छोड़ेंगे तो हमारे अनेक विकार शनैः शनैः दूर होने लगते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया आशीष ओमर जी भैया मनीष जी भैया वीरेन्द्र जी का नाम क्यों लिया भैया मुकेश जी के ५१ कुंडीय गायत्री महायज्ञ की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें