प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 17 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३७ वां* सार -संक्षेप
हमारे उत्साह में विश्वास में वृद्धि करने का सामाजिक चैतन्य को जाग्रत करने का हमारी हीनभावना को दूर करने का हमें याद दिलाने का कि आज का युगधर्म शक्ति उपासना है एक नित्य प्रयास चल रहा है जिससे हम अपने व्यक्तित्व को विस्तार देते हुए अपना दृष्टिकोण सामाजिक रख सकें स्वयं तक ही सीमित न रह जाएं अपने परिवार परिवेश को आदर्श स्वरूप दे सकें भय भ्रम से दूर हो जाएं
हमारे भारतीय जीवनदर्शन में अनेक विलक्षण महत्त्वपूर्ण तत्त्व भरे पड़े हैं जैसे हम सारी प्राकृतिक संपदाओं के स्वरूप में दैवीय चिन्तन करते थे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की शक्ति की अनुभूति करते थे हमारी भाषा सर्वश्रेष्ठ रही है हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ रहा है हम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र में विभेद नहीं करते थे हम विश्वगुरु भी थे हमारा समाज सशक्त था जिसकी बहुत से लोगों ने नकल की फिर भी
हम भ्रमित हुए अस्ताचल वाले देशों को जब देखा
अरुणाचल की छवि बनी नयन में धुँधली कंचन रेखा
जब हम हीनभावना से ग्रसित हो जाते हैं तब हम बहुत सारी नकल करने लगते हैं और यदि हम आत्मस्थ होते हैं तो हमें भाषा वेश व्यवहार आदि की नकल करने की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि हमारा चिन्तन एकाग्र रहता है इस कारण हम स्वयं तो आत्मस्थ हों ही नई पीढ़ी की ओर भी ध्यान दें
क्योंकि नई पीढ़ी को भी आत्मस्थ होकर चिन्तन करने की आवश्यकता है यद्यपि काम चुनौतीभरा है
आचार्य जी ने मनुस्मृति की चर्चा की मनु ने वैदिक विचारों की रक्षा की मनुष्य की प्रकृति के अनुसार उन्होंने वर्ण व्यवस्था की इसी प्रकार चार आश्रमों की व्यवस्था की हर आश्रम के अलग अलग नियम बनाए
अनेक विद्वानों ने मनुस्मृति पर व्याख्याएं लिखीं
व्यक्तित्व विकास की गलत रीतियों से क्या हो रहा है नारदस्मृति की चर्चा क्यों हुई सोरोस काशीराम का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें