बरषहिं जलद भूमि निअराएँ। जथा नवहिं बुध बिद्या पाएँ।
बूँद अघात सहहिं गिरि कैसे। खल के बचन संत सह जैसे
बादल पृथ्वी के पास आकर बरस रहे हैं,जिस प्रकार विद्या प्राप्त कर विद्वान् नम्र हो जाते हैं। बूँदों की चोट पर्वत उसी तरह सहते हैं, जैसे दुष्टों के वचन संत सहते हैं
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 18 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३८ वां* सार -संक्षेप
प्रतिदिन अनेक झंझावातों को झेलते हुए यदि प्रातः अच्छा चिन्तन मनन संकल्प हो जाए तो यह लाभकारी है ये सदाचार संप्रेषण हमारे विकारों के शुद्धिकरण का प्रयास हैं आचार्य जी हमें ध्यान दिलाते हुए कि अभी बहुत काम बाकी हैं नित्य यही प्रयास करते हैं कि हम अपने धर्म अपनी संस्कृति को जानें सोए सनातन को जाग्रत करने के लिए उठें भय और भ्रम को दूर करें आत्मस्थ होने का प्रयास करें यह अनुभव करें कि हम ईश्वर के अविनाशी अंश हैं
अनेक ऋषियों महर्षियों ज्ञानियों तपस्वियों ने हमें जो प्रदान किया है उसे जानना पहचानना और आत्मसात् करने का प्रयास करना हमारे अन्दर घर कर गई हीन भावना को समाप्त कर देगा
अपनी जड़ों से कटकर अंग्रेजी बोलना अंग्रेजी व्यवहार यह दिखाता है कि हम हीन भाव से ग्रसित हैं
हमने अपना लक्ष्य बनाया है राष्ट्र -निष्ठा से परिपूर्ण समाजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष
हम अपनी परम्परा प्रथा के अति आग्रही स्वाभिमानी राष्ट्रभक्तों का संगठन कर रहे हैं तो हमारा एक कर्तव्य बन जाता है कि हम देखें क्या हमारा जीवन सनातन धर्म के अनुकूल है?
यदि नहीं है तो हमें इस ओर ध्यान देना है अपनी नई पीढ़ी को अपनी परंपरा से संयुत करें उसे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की विशेषताएं बताएं
और
मिले जितने सुजन उनको संजोकर एक रखना है
जहाँ जो रुक गए उनको समझना है परखना है
अभी मंजिल हमारी दूर है पर आयेगी निश्चित
यही संकल्प हम सबको अहर्निश नित्य रखना है।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने हमारे गांव सरौंहां के जल शोधन यन्त्र की चर्चा क्यों की वर्षा से संबन्धित कौन सी चौपाइयां आचार्य जी ने बताईं शिशुपाल की चर्चा क्यों की जानने के लिए सुनें