प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष चतुर्थी /पञ्चमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 19 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२३९ वां* सार -संक्षेप
तुलसीदास, जिन्हें मां सरस्वती की कृपा का प्रसाद मिला, भारतवर्ष के मूलतत्व की कथा अर्थात् रामकथा निम्नांकित दोहे से प्रारम्भ करते हैं
अब रघुपति पद पंकरुह हियँ धरि पाइ प्रसाद।
कहउँ जुगल मुनिबर्य कर मिलन सुभग संबाद॥ 43(ख)॥
मैं अब प्रभु राम के चरण कमलों को हृदय में धारण कर एवं उनका प्रसाद प्राप्त कर दोनों श्रेष्ठ मुनियों याज्ञवल्क्य और
भरद्वाज मुनि, जो प्रयाग में बसते हैं और जिनका राम के चरणों में अत्यंत प्रेम है,के मिलन का सुंदर संवाद वर्णन करता हूँ
(भारत की रक्षा में ऐसे अनेक मुनियों तपस्वियों का योगदान है ऐसे मुनियों तपस्वियों का चिन्तन कर उनकी तपस्विता को क्षण मात्र के लिए यदि हम अपने भीतर प्रविष्ट करा देते हैं तो परम पवित्र हो जाते हैं)
माघ मास में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं तब अधिकांश लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं और प्रातःकाल त्रिवेणी में स्नान करते हैं
एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥
फिर पूरे मकर भर स्नान करके सब मुनि अपने आश्रमों को लौट गए। परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि को चरण पकड़कर ऋषि भरद्वाज ने जाने से रोक लिया
सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
करि पूजा मुनि सुजसु बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥
गुरु के साथ छिपाव करने से हृदय में पवित्र ज्ञान नहीं होता है
हे नाथ! सेवक पर दया करके मेरे अज्ञान का नाश कीजिए। संतों, पुराणों और उपनिषदों ने राम नाम के अनन्त प्रभाव का गान किया है।
अविनाशी भगवान शिव भी निरंतर राम नाम का जप करते रहते हैं।
रामु कवन प्रभु पूछउँ तोही। कहिअ बुझाइ कृपानिधि मोही॥
तो उत्तर देते हैं
एक राम अवधेस कुमारा। तिन्ह कर चरित बिदित संसारा॥
नारि बिरहँ दुखु लहेउ अपारा। भयउ रोषु रन रावनु मारा॥
आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त परामर्श दिया कि युगभारती के हम सदस्य महाकुम्भ जाने की योजना बनाएं एक संगठन के रूप में वहां एकत्र हों
भैया मनीष कृष्णा जी भैया विकास जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया २९ दिसंबर के कार्यक्रम के विषय में क्या कहा जानने के लिए सुनें