प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष पञ्चमी /षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 20 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२४० वां* सार -संक्षेप
हम लोग अनेक विकारों से ग्रस्त हैं शरीर से अत्यधिक स्वस्थ नहीं हैं मन कमजोर हैं बुद्धियां उतनी विकसित नहीं हैं किन्तु संसार में रहते हुए हमारा काम चल रहा है किन्तु गम्भीरता से हम सोचें और प्रयास करें कि हमारे विकार दूर हों अपने कर्तव्य का परिपालन समर्पित भाव से करने का प्रयत्न करें इसमें हमारा इष्ट निश्चित रूप से हमें शक्ति प्रदान करेगा अपने विकारों को दूर करने के लिए ये सदाचार संप्रेषण हमें सहायता प्रदान करेंगे तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में
अर्जुन शरीर से स्वस्थ हैं अत्यन्त बलशाली हैं गुडाका पर उनका नियन्त्रण हैं ज्ञानी हैं उनमें अनेक गुण परिलक्षित हो रहे हैं किन्तु एक अवगुण कि परिवार के मोह
(मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥
काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा॥15॥)
के कारण अपने कर्तव्य का ध्यान न देना और शैथिल्य प्राप्त कर लेना
के कारण भगवान् श्रीकृष्ण को वह ज्ञान देना पड़ा जो गीता के रूप में हमारे सामने है
इसी के सत्रहवें अध्याय में शरीर वाणी और मन संबन्धी तप बताए गए हैं
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।17.14।।
देव, संस्कारी ब्राह्मण, गुरु जो हमारे भीतर का अंधकार दूर करे और ज्ञानी जनों का पूजन, स्वच्छता ,सरलता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा किन्तु अहिंसा ऐसी नहीं कि दुष्ट हमें हानि पहुंचाए और हम चुप बैठे रहें बल्कि
"हम समर्थ हैं प्रबुद्ध धर्म अर्थ हैं
सनातनी सशक्त दुष्ट के लिए अनर्थ हैं।"
यह भाव रखें
शरीर संबंधी तप है
इसी प्रकार जो बोली उद्वेग उत्पन्न करने वाली नहीं है, जो प्रिय, हितकारक और सत्य है ऐसी बोली बोलना तथा वेदों का स्वाध्याय अभ्यास वाणी का तप है।
मन की प्रसन्नता पर ध्यान देना सौम्यभाव रखना , उचित समय पर मौन रखना आत्मसंयम और अन्त:करण की शुद्धि यह सब मानस तप हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने महाराणा प्रताप,रजनीश का नाम क्यों लिया वीरयज्ञदत्त शर्मा जी से संबन्धित क्या प्रसंग है जानने के लिए सुनें