प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 21 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२४१ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों को सुनकर यदि हमें भारतवर्ष के सात्विक चिन्तन का अवबोध हो जाए, शरीर को विस्मृत कर शरीरी का भान हो जाए, अपने आत्मिक तत्त्व की जानकारी हो जाए तो समझना चाहिए कि भगवान्,जो
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना। कर बिनु करम करइ बिधि नाना॥
आनन रहित सकल रस भोगी। बिनु बानी बकता बड़ जोगी॥
है,की कृपा है
तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में सांसारिक प्रपंचों से मुक्त होकर आनन्द -अर्णव में तिरने के लिए
संसार का स्वभाव विचित्र है कहीं सत्संग चल रहे हैं सदाचार वेलाएं चल रही हैं कुम्भ का आयोजन हो रहा है ५१ कुंडीय यज्ञ प्रारम्भ होने जा रहा है तो कहीं युद्ध हो रहे हैं राष्ट्रविरोधी तत्त्व सक्रिय होकर काम कर रहे हैं
किन्तु संसार का स्वभाव ऐसा है कि वह परिवर्तित होता रहता है जब बुराई आयेगी तो अच्छाई भी आयेगी इस विश्वास के हम विश्वासी हैं हम मरते नहीं हैं हमारा शरीर सांत है अर्थात् जिसका अंत हो
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।2.22।।
इसका क्षणांश भी अनुभव करें तो ऐसे क्षण आनन्द के हो जाते हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया डा प्रवीण भैया डा पंकज का नाम क्यों लिया कुम्भ के लिए किन भैया ने उत्साह का वातावरण तैयार किया उन्नाव के विद्यालय का उल्लेख क्यों हुआ
कल हमें कहां जाना चाहिए
प्रेरणास्रोत पूज्य गुरुजी को जब बिच्छू ने काट लिया तो उन्होंने क्या किया जानने के लिए सुनें