प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 24 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२४४ वां* सार -संक्षेप
अनेक विकारों से परिपूर्ण इस संसार में उत्थान पतन चलता रहता है ऐसे में हम यदि अपने तत्त्व को विस्मृत नहीं करेंगे तो व्याकुल नहीं होंगे
हमारा कातर्य दूर होगा हमसे संयुत विकृत स्थितियां हमें भूली रहेंगी
इस तत्त्व की अनुभूति अर्थात् हम मनुष्य हैं इसकी अनुभूति अत्यन्त अद्भुत है
षड्विकारों से ग्रस्त इस संसार में इन्द्रियों से संयुत कामना के विषय व्यक्ति को पतित कर देते हैं
मानव जीवन के आध्यात्मिक, भौतिक, और नैतिक विकास के लिए चार पुरुषार्थ बताए गए हैं ये यदि हमारे अन्दर व्यवस्थित रूप में हैं तो हमारा ओजस प्रकट होगा
हमारा जन्म निरर्थक नहीं होगा अन्यथा
धर्मार्थकाममोक्षणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।
अजागलस्तनस्येव तस्य जन्म निरर्थकम् ll
धर्म, अर्थ,काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में से जिस व्यक्ति में एक भी नहीं होता उसका जन्म बकरी के गले में लटकने वाले स्तन के समान बिना अर्थ का होता है
ईशोपनिषद् शुक्ल यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक उपनिषद है। यह उपनिषद् अपने नन्हें कलेवर के कारण अन्य उपनिषदों के बीच बेहद महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है यह सर्वश्रेष्ठ उपनिषद् कहा जा सकता है जिसके अठारह ही छंदों में सब कुछ बता दिया गया है
इसका तीसरा छंद है
असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः।
ताम्स्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः ॥3॥
मानव शरीर सभी शरीरों में श्रेष्ठ है
देवता से इतर असुर केवल लेना ही लेना जानते हैं जब अपने भीतर असुरत्व भर जाता है तो मनुष्य होते हुए भी हम पशु हैं इसलिए मनुष्य होने के कारण हमें त्यागपूर्ण भोग करना चाहिए
अपने द्वारा ही अपने का उद्धार हमें करना चाहिए हम अपने आत्म को पहचानें अन्यथा हम एक बद्धजीव ही हैं
आत्मस्थ होकर आनन्दित होने का प्रयास करें
हम विभुआत्मा के अंश अणुआत्मा हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने स्वामी विवेकानन्द के विषय में क्या बताया राम स्वारथ जी और बैल का क्या संदर्भ है यजुर्वेद का क्या अर्थ है निज घर क्या है जानने के लिए सुनें