25.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 25 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२४५ वां* सार -संक्षेप

 शिक्षा है संयम स्वाध्याय संकल्प सनातन स्वाभिमान

संतोष सरलता शुचिता मुदिता गरिमामय देशाभिमान

शिक्षा उत्साह उमंगों वाली आदिशक्ति की अमरकथा

सम्पूर्ण सृष्टि की जटिल समस्या सुलझा हरती सभी व्यथा

शिक्षित होकर भी जो पीड़ित या  व्यथित निराश्रित रहता है

वह अपने दुःखों अभावों को हरदम अपनों से कहता है 

 सचमुच में निरा अशिक्षित वह अक्षरबोधी  है यन्त्र मात्र 

दिखने में  मानव भले लगे पर सचमुच में है सिर्फ गात्र 


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष दशमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 25 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२४५ वां* सार -संक्षेप

आचार्य जी नित्य मोह की निशा में सोने वाले हम लोगों को उत्साहित प्रबोधित प्रेरित करते हैं यह हनुमान जी की कृपा है 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि सदाचार का सार है कि हम भा में जो है रत ऐसे भारत की अनुभूति करें हम ऐसे क्षण खोजें जिन क्षणों में हमें शान्ति की अनुभूति हो जाए क्योंकि वे क्षण अत्यन्त अद्भुत और आनन्ददायक हैं

ऐसे ही क्षण इस वेला में हमें प्राप्त हो रहे हैं तो आइये प्रवेश करें आज की वेला में 


कलि: शयानो भवति सञ्जिहानस्तु द्वापर:।

उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरन्।।

चरैवेति। चरैवेति।।

ऐतरेयोपनिषद् के इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है- जो शयन कर रहा है वह कलियुग है


मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा॥1॥

, निद्रा से उठ  जो जम्हाई ले रहा है वह द्वापर है, उठकर खड़ा हो जाने वाला त्रेतायुग है लेकिन सतत जाग्रत होकर जो चल रहा है, वह कृतयुग अर्थात् सतयुग  है जिसमें सर्वत्र शिवत्व प्रसरित है । इसलिए चलते रहो, चलते रहो l

अयोध्या कांड में एक प्रसंग है



श्री राम जी और सीता जी को जमीन पर सोते हुए देखकर निषाद को बड़ा दुःख हुआ


बोले लखन मधुर मृदु बानी। ग्यान बिराग भगति रस सानी॥

काहु न कोउ सुख दु:ख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥2॥


तो निषादराज से भगवान् राम, जो नर रूप धारण कर धरा पर आए हैं,की सेवा के कारण लगातार जागने का संकल्प लेने वाले लक्ष्मण जी 

ज्ञान, वैराग्य और भक्ति के रस से सनी हुई मीठी और कोमल वाणी में कह रहे हैं 

 

(यह उपदेश लक्ष्मण -गीता नाम से प्रसिद्ध है )

हे भाई! कोई किसी को सुख-दुःख का देने वाला नहीं है। सब अपने ही किए हुए कर्मों का फल भोगते हैं l



एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी। परमारथी प्रपंच बियोगी॥

जानिअ तबहिं जीव जग जागा। जब सब बिषय बिलास बिरागा॥2॥


इस जगत् रूपी रात्रि में योगी लोग जागते हैं वे परमार्थी हैं और प्रपंचों से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जाग्रत तभी जानना चाहिए जब उसे सम्पूर्ण भोग-विलासों से वैराग्य हो जाए


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भीगे नोटों वाला क्या प्रसंग बताया अभावों की अनुभूति और मनुष्यत्व की अनुभूति में क्या अन्तर है भैया चांद सेठ जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें