प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 26 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२४६ वां* सार -संक्षेप
जोग बियोग भोग भल मंदा। हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा॥
जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू। संपति बिपति करमु अरु कालू॥3॥
मिलना, बिछुड़ना, भले-बुरे भोग, शत्रु, मित्र आदि सभी भ्रम के फंदे हैं। जन्म-मृत्यु, सम्पत्ति-विपत्ति, कर्म और काल जगत् के जंजाल हैं
धरा , घर, धन, नगर, परिवार, स्वर्ग, नर्क आदि जहाँ तक व्यवहार हैं इन सबका मूल अज्ञान ही है।
इस तरह इन सांसारिक प्रपंचों के बारे में विचार कर क्रोध न करें न किसी पर दोषारोपण करें
मलिन मनों की पीड़ा और गुबारों को दबा जतन से अपने भीतर कहें और सहें
क्योंकि
मोह निसाँ सबु सोवनिहारा। देखिअ सपन अनेक प्रकारा॥
और
इस संसार रूपी रात्रि में योगी लोग अर्थात् सृष्टि को स्रष्टा से संयुत करने वाले लोग जागते हैं,वे परमार्थी भी हैं और प्रपंच से छूटे हुए हैं। जगत् में जीव को जागा हुआ तभी मानना चाहिए, जब सम्पूर्ण भोग-विलासों से उसे वैराग्य हो जाए
हम भी आत्मस्थ होने की चेष्टा करें
मैं तत्व शक्ति विश्वास समस्याओं का निश्चित समाधान
मैं जीवन हूं मानव जीवन मैं सृजन विसर्जन उपादान
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें इस तात्विक चिन्तन के पश्चात् संसार में प्रवेश करें और विचार करें आनन्द किस विषय का है तो हम देखेंगे आनन्द संबन्ध की मधुरता का है मन मुटाव का नहीं क्यों कि हम भारत देश में जन्मे हैं हम जुड़ कर रहना चाहते हैं पश्चिमी जगत की सोच इसके विपरीत है हम समस्याओं से घिरने के पश्चात् भी आनन्द में रहते हैं
डा पंकज जी कितनी पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं, आचार्य जी ने श्री माता प्रसाद मिश्र जी की चर्चा क्यों की भैया नीरज अग्रवाल जी मैली चादर वाले का उल्लेख क्यों हुआ निकृष्ट क्षुद्र स्वार्थ क्या है अपनी युगभारती की प्रार्थना को आत्मसात् क्यों करना चाहिए जानने के लिए सुनें