न मे द्वेष रागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्य भाव:
न धर्मो न चार्थो न कामो ना मोक्ष: चिदानन्द रूप: शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥3॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष कृष्ण पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 28 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२४८ वां* सार -संक्षेप
इन सदाचार संप्रेषणों को हम वेदमार्ग के अनुयायी लोग ध्यान से सुनें चिन्तन करें और उसके पश्चात् यदि अपने जीवन में कार्यान्वित करेंगे तो हमें लाभ पहुंचेगा
इन्हें सुनकर हम शक्ति अर्जित करें असार संसार से इतर भी अपना चिन्तन रखें हम विभु आत्मा के अंश हैं यह अनुभूति करते हुए मनुष्यत्व की राह पकड़ें प्रेम आत्मीयता का पल्लवन करें अपने जीवन का तिमिर भगाएं प्रशंसा और निन्दा दोनों को पचाना सीखें देने का भाव रखें
देवताओं में देने का भाव होता है वे अपने अपने भागों को प्राप्त कर संतुष्ट रहते हैं यही दैवीय चिन्तन है इसी चिन्तन के आधार पर हम मानते हैं जो कुछ इस संसार में है वह सब ईश्वर का है
देने का भाव न रख उससे इतर भाव रखेंगे तो कष्ट में रहेंगे व्यथित रहेंगे
संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों। प्राचीन काल में देवताओं का आचरण ऐसा ही रहा इसी कारण से वे वन्दनीय हैं।
हम अपनी संवेदनाओं विचारों विश्वासों के साथ एक दूसरे से संयुत रहें एक दूसरे से बोलें
अपनी भुजाओं की शक्ति को पहचानते हुए हम यह अनुभूति करें कि कभी हम विश्व गुरु थे
हम हैं वही जिन्होंने सागर पर पत्थर तैराए थे....
इसके अतिरिक्त हम लोगों के गांव सरौंहां में स्थित वाटर फिल्टर कैसे सही हुआ हरमेश जी का उल्लेख क्यों हुआ
जानने के लिए सुनें