3.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 3 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 3 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२३ वां* सार -संक्षेप


हम युद्ध भी लड़ते सदा निर्द्वन्द्व निस्पृह भाव से

तुम शान्ति में भी रह नहीं पाते सुशान्त स्वभाव से

हम त्यागकर संतुष्ट रहते जिन्दगी भर मौज से

तुम हर समय रहते सशंकित निज बुभुक्षित फौज से

तुम भोग हो हम भाव हैं तुम रोग हो हम राग हैं 

तुम हो अभावाक्रांत हम इस जगत का अनुराग हैं 

लेकिन समझ लेना न तुम हम शान्त संयत बुद्ध हैं 

हम मुण्डमाली शिव कपाली कालिका का युद्ध हैं



जब यह भाव मन में आता है तो हम शौर्य पराक्रम की अनुभूति करने लगते हैं और हम उत्साहित होते हैं 

हम सृष्टि संघर्ष के योद्धा हैं और सृष्टि के आनन्द के उपासक भी हैं 

इन सदाचार संप्रेषणों का उद्देश्य भी यही है इनके माध्यम से हम अपने विकारों को दूर करते हैं और संस्कारों को आत्मसात् करते हैं

इनसे प्रेरणा लेकर तूफानों में हम अपने पैर टिकाने का प्रयास कर सकते हैं 

हम अपने भीतर चुम्बकीय आकर्षण पैदा कर सकते हैं 

आचार्य जी ने कहा प्रिय बोलने का अभ्यास अत्यावश्यक है और हम एक दूसरे की सहायता के लिए भी तत्पर रहें 

जहां जिस ठौर जैसे दौर में भी हों वहीं जागें 

कि अपने इष्ट से वरदान बस केवल यही मांगें 

हमारा तन सदा साथी रहे मन शांत संयत हो 

चुनौती कोइ भी हो हम न उससे भीत हों भागें


सर्वत्र अपनी दृष्टि रखते हुए हम अपने कर्तव्य का ध्यान रखें यही कर्तव्य धर्म बन जाता है जीवन पर्यन्त अदैन्य रहे जब भी हमारे सामने कोई चुनौती आए हम उससे न तो भयभीत हों न ही उससे मुंह मोड़ लें हकीकत राय को अत्याचारी नहीं बदल सके थे

इस समय हम श्रुति और स्मृति की चर्चा कर रहे हैं 

श्रुति सहज ज्ञान है जो मनुष्य लेकर पैदा हुआ

श्रुति को ईश्वरीय उत्पत्ति का माना जाता है, जबकि स्मृति को मानव बुद्धि का

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बागेश्वर बाबा की चर्चा क्यों की 

विवेकानन्द और परमहंस में क्या किसी के साथ भगवान् शब्द संयुत किया गया जानने के लिए सुनें