प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 4 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२२४ वां* सार -संक्षेप
विषम परिस्थितियों में होने के बाद आचार्य जी नित्य हमें उद्बोधित करते हैं यह हनुमान जी का वरदान है सतयुग से चला आ रहा दैवासुर संग्राम आज भी चल रहा है
बुराई के साथ अच्छाई भी विद्यमान है कभी हम निराश हताश रहते हैं कभी उत्साहित रहते हैं
और इस तरह दिन बीत जाता है ऐसे में यदि कुछ क्षण हमें आत्मस्थता के लिए मिल जाएं हमें ईश्वरत्व की अनुभूति हो जाए तो यह हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी है
आत्मबोध ही ईश्वरत्व है वही तत्व शक्ति विश्वास है
इसके स्थायित्व के लिए हम उपासना करते हैं
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अभिव्यक्ति से लगता है कि हम बहुत कुछ हैं
विचार नित्य हो यही रहें बसें जहाँ कहीं
कि हम अमर अनंत हैं सदा स्वशक्तिमंत हैं
जगत्पिता के तन्त्र आत्मवंत हैं स्वतंत्र हैं।
तुलसीदास जी को राम किसी न किसी रूप में मिलते ही रहे और फिर हनुमान जी मिल गए तो
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो, लैबे को एक न दैबे को दोऊ'
कहने वाले तुलसीदास जी को इससे शक्ति की अनुभूति हुई
और तब उन्होंने कहा
मंगल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की। गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥
जब हमें राम की संगति मिल गई तो कोई भी कुसंगति हमें प्रभावित नहीं करेगी
भगवान् आवश्यकता पर अवतरित हो सकता है तो हम भी संकटों को झेल सकते हैं क्योंकि हम भी भगवान का ही अंश हैं
शिवाजी महाराज को भी एक चिन्तक विचारक ने प्रभावित किया विश्वामित्र ने राम को प्रेरित किया
चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को
प्राणनाथ ने ओरछा के छत्रसाल को प्रेरित किया
इत यमुना, उत नर्मदा, इत चम्बल, उत टोंस।
छत्रसाल सों लरन की, रही न काहू हौंस॥
प्राणनाथ छत्रसाल के मात्र धार्मिक गुरू ही नहीं थे अपितु वह उन्हें राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मामलों में भी निर्देशित करते थे।
कोई न कोई ऋषि महर्षि विचारक प्रेरणा देता रहा है
आज भी ऐसा ही हो रहा है हम राष्ट्रभक्त प्रेरित हो रहे हैं संगठित होते जा रहे हैं हमारे लिए सेतु तैयार हो रहा है हमें अपना युगधर्म याद रखना है
राक्षसी प्रभाव की काट के लिए आचार्य जी ने परामर्श दिया कि अपने गांव सरौंहां के मन्दिर में भी ध्वनिविस्तारक यन्त्र लगवा दिए जाएं
इसके अतिरिक्त चार K की चर्चा क्यों हुई
जगह जगह मोमबत्ती जलाने का क्या तात्पर्य है अपनी सीमित शक्ति को असीमित बनाने के लिए क्या करना चाहिए संगठन की प्रभावोत्पादकता के लिए क्या करना है
२९ दिसंबर के लिए क्या परामर्श आचार्य जी ने दिया जानने के लिए सुनें