5.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 5 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२५ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 5 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२५ वां* सार -संक्षेप



ज्ञान, कर्म और उपासना की त्रिवेणी अद्भुत है और प्रायः इसकी चर्चा होती है

 मनुष्य जन्म से अपूर्ण होता है ज्ञान द्वारा ही वह पूर्ण होता है  ज्ञान देने वाली हमारी ऋषि परम्परा अद्भुत है उसी ने व्यञ्जनों का निर्माण किया जब कि स्वर हैं 

स्वयं राजते इति स्वरः ।

फिर व्याकरण का निर्माण हुआ और उसका आधार बने माहेश्वर सूत्र 

माहेश्वर सूत्र (संस्कृत: शिवसूत्राणि या महेश्वर सूत्राणि) अष्टाध्यायी में आए १४ सूत्र (अक्षरों के समूह) हैं जिनका उपयोग करके व्याकरण के नियमों को अत्यन्त लघु रूप देने में पाणिनि ने सफलता पायी है।भारतीय ज्ञान की परम्परा अद्भुत है अध्ययन और स्वाध्याय चिन्तन मनन मन्थन चाहता है

आचार्य जी ने आधिभौतिक आधिदैविक आध्यात्मिक की चर्चा की


आधिभौतिक का शाब्दिक अर्थ है भूत या जीवित प्राणियों से संबंधित ।

आधिदैविक का शाब्दिक अर्थ है दैव या भाग्य, अदृश्य शक्तियों और देवताओं से संबंधित ।

आध्यात्मिक का शाब्दिक अर्थ है आत्मा या शरीर (और मन ) से संबंधित।


तीनों के सामञ्जस्य से मनुष्य में पूर्णता आती है आधिभौतिक शुद्धि कर्म के द्वारा आती है और आधिदैविक उपासना के द्वारा और आध्यात्मिक शुद्धि ज्ञान के द्वारा आती है


इसको व्यावहारिक रूप में लाने के लिए हमें अपनी दिनचर्या सही करनी होगी शक्ति की अनुभूति आवश्यक है 

हम लोगों का संगठन यदि विचारशील लोगों का संगठन है तो इसकी सार्थकता कैसे सिद्ध होगी वेद-अध्ययन की चर्चा क्यों हुई जानने के लिए सुनें