7.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 7 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२७ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष षष्ठी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 7 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२७ वां* सार -संक्षेप


हमें निश्चित रूप से सहारा मिलता है यदि हम अनुभव करें कि परमात्मा हमारे भीतर अवस्थित है यह आत्माभिव्यक्ति आत्मानुभूति अद्भुत है जो आनन्द प्रदान करती है गीता में भगवान् कृष्ण कह रहे हैं 


वृष्णीनां वासुदेवोऽस्मि पाण्डवानां धनंजयः।


मुनीनामप्यहं व्यासः कवीनामुशना कविः।।10.37।।


मैं वृष्णिवंशियों में वासुदेव हूँ और पाण्डवों में धनञ्जय , मैं मनन करने वालों में व्यास और कवियों जो चिन्तक विचारक सब पदार्थों को जानने वाले होते हैं में उशना अर्थात् शुक्राचार्य कवि हूँ।।


यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।


 जो कोई भी विभूतियुक्त, कान्तियुक्त अथवा शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी है, उसको हे अर्जुन मेरे तेज के अंश से ही उत्पन्न समझो

और हमें भी यह समझना चाहिए कि किसी में भी  विशेषता दिखाई दे तो वह ईश्वर अंश है 

शरीर मरता है संसार मरता है हम न शरीर हैं न संसार हैं हम तो विचार हैं उस विचार का जब सहज ढंग से व्यवहार होने लगता है तो हमारा विस्तार होने लगता है

हमारे सनातन धर्म का एक तात्विक स्वरूप है संबन्धों का विस्तार जिसमें विकारों का स्थान नहीं रहता लेकिन यदि विकार हावी हो जाएं तो 


दण्डो दमयतामस्मि नीतिरस्मि जिगीषताम्।


मौनं चैवास्मि गुह्यानां ज्ञानं ज्ञानवतामहम्।।10.38।।


मैं दमन करने वालों का दण्ड हूँ और विजय चाहने वालों की नीति हूँ मैं गुह्यों में मौन, ज्ञानवान् व्यक्तियों का ज्ञान हूँ।।

दंड देने की क्षमता हमारे पास संगठन के पास होना अनिवार्य है ताकि दुष्ट हमें हानि न पहुंचा सकें दुष्ट में भय इसी कारण आयेगा



हमें कभी अभावों का चिन्तन नहीं करना चाहिए आज का युगधर्म शक्ति उपासना है जिसके लिए हमारा संगठित होना अनिवार्य है संगठन शक्तिशाली तब होगा जब उसके अवयवों में आत्मीयता का भाव होगा विचारों में मग्न होकर व्यवहार के लिए अपने पग उठा लें 

हमारे यहां की

सोऽकामयत् एकोऽहम् बहुस्याम् वाली 

 परिवार पद्धति किस प्रकार विशिष्ट है इसके लिए आचार्य जी ने बबूल को झुकाने वाला एक प्रसंग बताया

लेखन योग क्यों महत्त्वपूर्ण है आचार्य जी ने भैया पंकज जी भैया संदीप शुक्ल जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें