8.12.24

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ (कालयुक्त संवत्सर ) 8 दिसंबर 2024 का सदाचार सम्प्रेषण *१२२८ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  (कालयुक्त संवत्सर ) 8 दिसंबर 2024  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२२८ वां* सार -संक्षेप


भावपूर्ण ढंग से उपस्थित होकर नित्य आचार्य जी विद्वत्ता और भक्ति का सामञ्जस्य करते हुए हमें प्रेरित करते हैं हमारे हित की बात करते हैं आचार्य जी का कहना है गुरु वही जो शिष्य से पराजित होने की कामना करे पिता वही जो पुत्र से हारने में प्रसन्नता का अनुभव करे 

भाव में जाकर हम तत्त्व में प्रवेश कर सकते हैं भाव का संसार अद्भुत है भाव अन्तरात्मा की उत्पत्ति है विभुआत्मा का अंश अन्तरात्मा निश्चेष्ट होकर भी चेष्टायुक्त रहता है अध्यात्मलोक में प्रवेश करके यदि हम सृष्टि की उत्पत्ति का चिन्तन करते हैं तो यही लगता है कि ब्रह्मा ने एक यज्ञ का विधान किया और परमात्मा ने ब्रह्म को प्रेरित किया 

इस संसार में हम कर्म अकर्म नहीं समझ पाते तो हमें अध्यात्म का आश्रय लेना चाहिए अध्यात्म व्यवहार के साथ जब सामञ्जस्य करता है तो हम जयस्वी बनते हैं यही गीता का सार है 

गीता में 


किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।


तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।4.16।।


कर्म और अकर्म के विषय में विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं। अतः वह कर्म-तत्त्व मैं तुम्हें भलीभाँति कहूँगा, जिसे जानकर तुम संसार-बन्धन से मुक्त हो जाओगे


हमारे समस्त कार्य कामना और संकल्प से रहित होने चाहिए 

कर्मफलासक्ति को त्यागना चाहिए चित्त और आत्मा को संयमित करना सारे परिग्रहों को त्यागना अनिवार्य है  जो कुछ प्राप्त हो उसमें ही सन्तुष्ट रहना सर्वथा उचित है

अनेक विकारों से ग्रसित भौतिकवादी दुष्ट इस युग की विकृति हैं ऐसे में हमें अपना कर्म समझना है इन विकृतियों को पहचानकर अपनी बुद्धि विवेक विचार कौशल से हम उनके ऊपर हावी होकर उन्हें शान्त कर सकते हैं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बैरिस्टर साहब के किस लम्बे पत्र की चर्चा की सुदर्शन जी का उल्लेख क्यों किया उशना क्या चाहते थे शौर्य प्रमंडित अध्यात्म क्यों अनिवार्य है जानने के लिए सुनें

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