लटे-पटे दिन काटिए रहिए घाम सो, वाके तले न बैठिए जा पेड़ पात न हो
संकट में दिन काटना और गर्मी में सोते रहना अच्छा है किन्तु ऐसे पेड़ के नीचे जिस पर पत्ते न हूँ सोना नहीं चाहिए ऐसा पेड़ सूखा खोखला होता है और उसके टूटने का डर होता है
किन्तु मोटा वृक्ष हो तो उसकी शरण ले सकते हैं इसी प्रकार जो तत्त्वज्ञ विशिष्ट शक्तिसम्पन्न है उसका आश्रय लेंगे तो किसी भी परिस्थिति में शान्ति की अनुभूति होगी ही
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष एकादशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 10 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२६१ वां* सार -संक्षेप
शान्त और विशुद्ध पर्यावरण की कामना करते हुए आचार्य जी का नित्य प्रयास रहता है कि सद्शिक्षा दे रहे इन सदाचार संप्रेषणों से हमें कुछ तत्त्व, विचार प्राप्त हों साथ ही गुणों और दोषों से भरे इस संसार में रहने की शक्ति प्राप्त हो
तत्त्वज्ञ विशिष्ट शक्तिसम्पन्न आचार्य जी शौर्य प्रमंडित अध्यात्म को नितान्त आवश्यक बताते हुए परामर्श दे रहे हैं कि हम भगवान् के प्रति शरणागत होते हुए जीवन के रहस्य को समझने का भी प्रयास करें
हम अणुआत्मा सर्वशक्तिमान् विभु आत्मा के अंश है हमारी सीमा है इस कारण हम संपूर्ण संसार को न तो परिशुद्ध कर सकते हैं और न उसके पूरे यथार्थ को जान सकते हैं किन्तु वृक्षशायिका की तरह जितना कर सकें जितना जान जाएं यह भगवान् की कृपा है
हम आत्म के दर्शन करें पूजन करें और उसका भजन करें
आत्म का अपने भीतर जो प्रकाश है उसे पहचानना जानना ही ध्यान है इस कारण हम उसे जानने की चेष्टा करें
आचार्य जी ने यह भी स्पष्ट किया कि तात्विक विषय आत्मदर्शन की भूमिका क्या है
आत्मा ही दर्शनीय श्रवणीय विशिष्ट ज्ञान है
इसके लिए आचार्य जी ने एक प्रसंग बताते हुए बृहदारण्यकोपनिषद् के द्वितीयोऽध्याय के चतुर्थं ब्राह्मणं के अंश का उल्लेख किया
न वा अरे सर्वस्य कामाय सर्वं प्रियं भवत्यात्मनस्तु कामाय सर्वं प्रियं भवति। आत्मा वा अरे द्रष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रेय्यात्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेद सर्वं विदितम्॥
इसके अतिरिक्त रज्जू भैया और आचार्य जी का एम ए फर्स्ट क्लास वाला क्या प्रसंग था त्रिकुटी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें