राम भक्तो जागो विश्राम छोड़ सन्नद्ध रहो
कर में कर्मकुठार सतत तत्पर सचेष्ट प्रतिबद्ध रहो l
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 12 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२६३ वां* सार -संक्षेप
जब हम आत्मस्थ होकर चिन्तन मनन विचार करेंगे अपने भीतर आशा और विश्वास का संचार करेंगे तो यह अवश्यमेव अनुभूति होगी कि हम शक्ति के अद्भुत भंडार है शक्तिमत्ता जब भीतर से उत्साह से भर जाती है तो व्यक्ति जो भी कार्य करता है वह भक्तिपूर्ण कार्य होता है परिस्थिति कैसी भी हो उससे चिन्तित नहीं होता
भक्ति में शक्ति उस समय परिलक्षित होती है जब भक्त को विश्वास होता है
अविश्वसनीय भक्ति से कुछ प्राप्त नहीं होता
आत्मशक्ति वास्तव में अद्भुत है और इसके लिए अध्ययन स्वाध्याय ध्यान धारणा आवश्यक है
आत्मशक्ति की अनुभूति आनन्द प्रदान करती है
चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 'जो वो है वही मैं हूं'
अवर्णनीय है
मन्दिरों की उपस्थिति और भक्ति का सांकेतिक स्वरूप भी शक्ति देता है हमें इनसे भी संयुत होना चाहिए
इस कलियुग में हम कैसे तरेंगे इसका उत्तर है
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा। गावत नर पावहिं भव थाहा॥2॥
केवल श्री हरि की गुणगाथाओं का गान करने से ही भवसागर की थाह पा जाएंगे जब हम बार बार गुणगान करेंगे उदाहरण के लिए
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास।
गाइ राम गुन गन बिमल भव तर बिनहिं प्रयास॥103 क॥
भगवान् राम का नाम लेंगे तो उनके कार्य भी याद आएंगे कितनी विषम परिस्थितियों में भी वे लक्ष्य से डिगे नहीं
हमें रामत्व की अनुभूति होगी वह रामत्व कि हम दुष्ट का नाश करेंगे भले ही वह कितना भी शक्तिशाली हो
उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
यदि हम दुष्ट के विरोध में नहीं खड़े हैं तो इसका अर्थ है हमारे भीतर रामत्व नहीं है जैसे मात्र दस वर्ष की आयु वाले शिवाजी गाय काटने ले जा रहे कसाई का विरोध करते हैं तो इस घटना से रामत्व प्रदर्शित होता है
भक्त शिवाजी यह देखते हैं कि कसाई गो-माता पर अत्याचार करते हुए, उनको काटने ले जा रहा है वह तभी अपनी तलवार निकालते हैं और पहले तो गाय की रस्सी काटकर उसे बंधन मुक्त करते हैं और वह कसाई कुछ कहता इससे पहले ही उसका सर धड़ से अलग कर देते हैं
ऐसे महापुरुषों की लम्बी सूची है हमारे देश में और इसी के आधार पर हम कहते हैं कि हम कभी गुलाम रहे नहीं हम संघर्षशील रहे दुर्भाग्य से शिक्षा ऐसी रही कि हमें इन वीरों से परिचित नहीं कराया गया शिक्षा केवल उदरपूर्ति के लिए नौकरी के लिए रही
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने उन्नाव विद्यालय में आज होने जा रहे पुरातन छात्र परिषद के सम्मेलन की सूचना दी
आचार्य जी ने मा अशोक सिंघल जी की चर्चा क्यों की उत्तरकांड की कौन सी चौपाइयां पढ़ने का परामर्श दिया जानने के लिए सुनें