13.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 13 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६४ वां* सार -संक्षेप

 तदपि कही गुर बारहिं बारा। समुझि परी कछु मति अनुसारा॥

भाषाबद्ध करबि मैं सोई। मोरें मन प्रबोध जेहिं होई॥



प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पूर्णिमा विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 13 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६४ वां* सार -संक्षेप





हनुमान जी,  जो कलियुग के प्रत्यक्ष देवता हैं


नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा।


 और जिनसे हमें बल बुद्धि विद्या संयम विचार बहुत कुछ मिलता है, की प्रेरणा से हमें ये सदाचार संप्रेषण प्राप्त हो रहे हैं हमें इनका लाभ उठाना चाहिए


आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम भावों में प्रवेश करना सीखें और इस कार्य में हनुमान जी हमारे सबसे बड़े सहायक हैं अपने भीतर गुरुत्व खोजें देश का दर्शन करें अध्ययन स्वाध्याय करें 

अध्ययन के पश्चात् स्वाध्याय हमारी शक्ति है और इसी से बुद्धि  विचार संकल्प संयुत है कर्ममय जीवन बनाएं अपने लक्ष्य का स्मरण रखें 

कर्मकुंठा से बचें 


कर्ममय जीवन जगत का मूल है 


द्वीप को तट समझ लेना भूल है 


गीत गाना है सदा विश्वास के 


स्वप्न बुनने हैं प्रगति के, आस के , 


देहली दीपक धरा का न्याय है 


कर्म-कुण्ठा पतन का पर्याय है 


स्वर्ण शोभा हो भले पर 


अंकुरण के लिये व्याकुल बस धरा की धूल है।

धीरे धीरे जब हम संसार को समझने लगते हैं और वह समझ जब स्थिर होने लगती है तो ऐसी स्थिति को ब्राह्मी स्थिति की भूमिका कहा जा सकता है


विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः।


निर्ममो निरहंकारः स शांतिमधिगच्छति।।2.71।।


वह मनुष्य शान्ति को प्राप्त होता है

 जो  सम्पूर्ण कामनाओं का त्याग करके स्पृहारहित, ममतारहित और अहंकाररहित होकर आचरण करता है

ब्राह्मी स्थिति अद्भुत है 


जो विशुद्ध बुद्धि से युक्त, वैराग्य के आश्रित, एकान्तसेवी और नियमित भोजन करने वाला साधक धीरज के साथ इन्द्रियों का नियमन करके, शरीर-वाणी-मन को वश में करके, शब्द आदि विषयों और राग-द्वेष को छोड़कर निरन्तर ध्यानयोग के परायण हो जाता है, वह अहंकार, बल, दर्प, काम, क्रोध और परिग्रह को त्याग  एवं  ममतारहित तथा शान्त होकर ब्रह्मप्राप्ति का पात्र हो जाता है।


(बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।


शब्दादीन् विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।18.51।।...)

हम शान्ति की खोज में रहते हैं आनन्द की गवेषणा करते हैं 

इन्द्रियतृप्ति को हम यदि शमित कर लें अहं का भाव दबा लें तो हमारे स्मरण में रहता है 

ईशा वास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत्‌।

तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम्‌ ॥


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने बताया कि कल सरस्वती विद्या मन्दिर इंटर कालेज उन्नाव जिसके नये प्रधानाचार्य श्री अशोक कुमार शुक्ल जी हैं की पुरातन छात्र परिषद का सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें १२० पूर्व छात्र उपस्थित रहे 


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