17.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 17 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२६८ वां* सार -संक्षेप

 संसार समस्या है तो हम हैं समाधान

स्रष्टाकर्ता के जगपालन के विधिविधान

हम अणु से विभु तक की यात्रा के राही हैं 

हम सृजन -प्रलय के द्रष्टा और गवाही हैं


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 17 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२६८ वां* सार -संक्षेप


इन सदाचार संप्रेषणों के माध्यम से विचारशील कर्मशील समर्पित संयमी सात्विक आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित उत्थित करते हैं हमें इन सदाचारमय विचारों का श्रवण कर आगे बढ़ने का संकल्प लेते हुए लाभ उठाना चाहिए 

हम जो संयमित जीवन जीने का संकल्प लिए हुए हैं और भावनासम्पन्न हैं राष्ट्रभक्त हैं संसार में रहते हुए संसार को समझने का प्रयास करें अपने मनुष्यत्व की पूजा करें और ध्यान रखें 


संसार समस्या है तो हम हैं समाधान

विभु के द्वारा निर्मित निर्देशित संविधान

और सनातनत्व की अनुभूति करें आत्मविस्तार का प्रयास करें शुभ मार्ग की ओर चलें जलें क्षुद्र स्वार्थों का त्याग करें सोऽहं का भाव रखें 


हो एकत्रित किसी बहाने हिन्दुभाव के नाते 

तभी सुरक्षित रह पाएंगे घर के रिश्ते नाते 

हिन्दु हिन्दुस्थान सनातन धर्म न चिन्तन ही है 

इसके लिए शक्ति संवर्धन और संगठन भी है

हम संगठित तभी होंगे जब अपनों को जानेंगे

उनके सुख दुःख लाभ हानि को मन से पहचानेंगे


केवल बातें नहीं करें उतरें नित प्रति अपनों हित 

अपने वे जो मातृभूमि भारत माता से गर्वित


कलियुग में हम बिना संगठन के सशक्त नहीं रह सकते 

संघे शक्तिः कलौ युगे

इस कारण संगठित होकर शक्तिसंपन्न बनने का प्रयास करें 

वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः लक्ष्य भूले नहीं क्योंकि 


हमारा देश भास्वर भक्ति का

प्रतिमान है स्वर है

इसी ने तत्त्वदर्शन कर कहा संसार नश्वर है

न जाना जिस किसी ने इस धरा के मूल शिवस्वर को

वही भूले भ्रमे फिर फिर रहे हैं छोड़ निजघर को ।

निजघर भारत भी है और अपना आत्मतत्त्व भी है 

हम बिना समाज को त्यागे आत्मस्थ होने का प्रयास करें आत्मस्थता में कभी कभी ऐसे सांसारिक विषय भी प्राप्त हो जाते हैं जो अत्यन्त तात्त्विक होते हैं


आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त किस उपनिषद् के सारे छंद पढ़ने का परामर्श दिया,बत्ती जाने पर श्रद्धेय शर्मा जी ने क्या कहा था कामायनी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें