2.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 2 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५३ वां* सार -संक्षेप

 प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष तृतीया विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 2 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५३ वां* सार -संक्षेप


ज्ञान -सिन्धु आचार्य जी सांसारिक प्रपंचों में अत्यन्त व्यस्त रहते हुए भी नित्य हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं  ताकि हम ज्ञानसम्पन्न शक्तिसम्पन्न मेधावी बन सकें  और यह हमारा सौभाग्य है कि आचार्य जी हमारे योगक्षेम की चिन्ता करते हैं  सदैव उत्साह में अपनी बात पूरी कर शिक्षकत्व की एक अद्भुत मिसाल पेश करते हैं हम इनमें रमने की चेष्टा करें 

आत्मबोधोत्सव मनाने का प्रयास करें 

प्रस्तुत है  अजब गजब दुनिया और दुनियादारी से परिचित कराती आचार्य जी की  एक कविता जिसकी अन्तिम पंक्तियां हमें पौरुष और पराक्रम की अनुभूति कराती हैं 


इस दुनिया में सबका अपना अलग अलग अंदाज है

सबकी बोली सबकी शैली अलग -अलग 

आवाज है ।

तरह-तरह के रंग-रूप रुचियों का अद्भुत मेल है 

अजब सुहाना अकस्मात मिट जाने वाला खेल है 

प्यार और तकरार प्रेम की पीर सुखद अनुभूति है

जो जलकर के

राख हो गयी उसका नाम विभूति है

सबका सुर सबका तेवर है सबका अपना साज है ॥१॥

इस दुनिया में...


दुनियादारी की भी सबकी अलग-अलग परिभाषा है

शब्दों का अन्दाज अलग पर वही एक सी भाषा है

दुनिया में आना जीना जाना तो एक बहाना है

सचमुच में दुनियादारी का अजब-गजब अफसाना है

यह अफसाना ही दुनिया का अपना एक मिजाज है ॥ २ ll 

इस दुनिया में....

  हर पारखी यहाँ पर रखता अपनी-अपनी माप है

पैमानों पर लगी हुई है सबकी अपनी छाप है

ये पैमाने ही दुनिया भर के सारे संघर्ष हैं

क्योंकि यहाँ सबके हो जाते अलग-अलग निष्कर्ष हैं

खुश हो जाता एक दूसरे पर जब गिरती गाज है ||३||

इस दुनिया में..

दुनिया में रहते रहने पर सबको सभी अखरते हैं 

गुम हो जाने पर सुधियों में प्राय: रोज उभरते हैं

अच्छा-बुरा प्रेम-नफरत दुनियादारी के नखरे हैं

तरह-तरह के छल-प्रपंच कोने-कोने में पसरे हैं

दिन में शीश मुफलिसी ढोता रात पहनता ताज है ||४||

इस दुनिया में...

ज्ञान नसीहत का खुमार है, ध्यान यहाँ सोना-चांदी

विश्वासों की छत  नीचे सोई रिश्तों की आबादी

दुनिया रंगमंच दुनिया सागर दुनिया संग्राम है

दुनिया सुख-दुख की प्रहेलिका मग का एक मुकाम है

लेकिन दुनिया पर दुनियादारों को पूरा नाज है ॥५॥

इस दुनिया...


जो दुनिया को जान न पाया उसको दुनिया फानी है,

हिम्मत और हौसले को यह दुनिया भरी जवानी है

दुनिया का इतिहास लिखा है  पौरुष और पराक्रम ने

मनचाहा भूगोल बनाया सदा बाहुओं के श्रम ने

श्रम का पौरुष का हरदम ऐसा ही रहा रिवाज है || ६ ||

इस दुनिया में...

१४-६-२०१४

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने 

भैया आशीष जोग जी भैया प्रमेन्द्र जी और श्री ब्रह्मस्वरूप जी अग्रवाल का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें