3.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 3 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५४ वां* सार -संक्षेप

 समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।

बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥121 क॥ लंका कांड 


(हम भी यदि अपने जीवनकाल में विजय, विवेक और वैभव की कामना करते हैं तो रघुवंश शिरोमणि प्रभु राम के समर विजय की गाथा का श्रवण मनन और चिंतन करते रहें।)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष चतुर्थी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 3 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५४ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण विशिष्ट हैं और हमारा मार्गदर्शन कर रहे हैं आचार्य जी का प्रयास रहता है कि हम उत्साहित रहें,अपनी क्षमतानुसार समाज को लाभ प्रदान करें, तत्त्व शक्ति विश्वास की अनुभूति करें आत्मबोध का अभ्यास करें ( चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् )

हमारा मन डांवाडोल न रहे अविश्वास में डोल रहे अपने आत्मीय जनों का सहारा बनें 


अँधेरा है अगर तो कल सबेरा भी सुनिश्चित है 

अगर अपना मनस् अश्रान्त स्वस्थित है विनिश्चित है

मगर प्राय: मनस् झंझा झकोरों में उड़ा करता

कहा करते इसी से सब "यहाँ सबकुछ अनिश्चित है "

श्रीकृष्ण कभी डांवाडोल नहीं रहे अपितु स्वयं अधीर जनों को शक्ति देते रहे 

हमें भी व्याकुल व्यथित नहीं रहना चाहिए प्रातःकाल तो हमें चिन्तामुक्त होकर उत्थित होने का प्रयास करना चाहिए

भगवान् कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि यह अनुभूति करो कि मैं कौन हूं मैं आत्मबोध के साथ जब संयुत हो जाता है तो हम व्याकुल नहीं रहते 

हमारे अंदर सब कुछ है 

वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।


इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना।।10.22।।


मैं वेदों में सामवेद, देवों में इन्द्र,इन्द्रियों में मन और प्राणियों की चेतना हूँ।

तुम भी यह अनुभव करो कि तुम कौन हो

भगवान् कृष्ण का जीवन भगवान् राम का जीवन अद्भुत है



यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।

श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥121 ख॥


अरे मन! विचार करके देख लो ! यह कलियुग पापों का गृह है। इसमें श्री रामजी के नाम को छोड़कर  दूसरा कोई आधार  है ही नहीं 

धनुष बाण लिए भगवान् सदैव स्मरण में रहते हैं रामत्व की यह अनुभूति अद्भुत है 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने रुद्र देवता के विषय में बताया  और बतलाया कि हनुमान जी भी रुद्रावतार हैं 

आचार्य जी ने अमेरिका से लौटे भैया नीरज अग्रवाल जी और भैया नीरज कुमार जी का नाम क्यों लिया जानने के लिए सुनें