भौतिक विकास भी अच्छा है और यह होता रहना भी चाहिए किन्तु अपने मूल तत्त्व को विस्मृत किए बिना...
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष सप्तमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 20 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२७१ वां* सार -संक्षेप
वर्तमान परिस्थितियों पर दृष्टिपात करते हुए और उनसे अनुकूलन स्थापित करते हुए सदाचारमय विचारों का अपने परिवार में नई पीढ़ी में किस प्रकार संचरण कर सकते हैं यह मार्ग हमें खोजने की आवश्यकता है इससे परिवार में नई पीढ़ी में गांभीर्य आयेगा इसी का नाम संस्कार है
आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम सार्थक कार्य करें
जैसे जब भी अवसर उपलब्ध हो नई पीढ़ी को अपने अनुभवों से लाभ प्रदान करें और उससे जो कहें वैसा करें भी यदि हम कहें कि मृदु वाणी बोलो तो स्वयं भी मृदु वाणी ही बोलें
इसी बात का एक आख्यान है जिसमें बहुत दिन के बाद भी युधिष्ठिर याद नहीं कर पाए कि
सत्यं वद । धर्मं चर । स्वाध्यायान्मा प्रमदः ।
तैत्तिरीय उपनिषद्, शिक्षावल्ली, अनुवाक ११, मंत्र १)
फिर उन्हें सत्यं वद याद हो पाया क्यों उन्होंने केवल कहा नहीं उसे आचरण में लाए
सत्य, धर्म के साथ स्वाध्याय को भी हमारे ग्रंथों में बहुत विस्तार से समझाया गया है
स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का भी अध्ययन जैसा हमारे मनीषियों ने किया ज्ञान भीतर से ही उत्पन्न होता है
आचार्य जी ने कल की बैठक की चर्चा की जिसमें आचार्य जी सहित १९७७ से २०२३ बैच के २४ सदस्य उपस्थित रहे
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने
ज्ञान नसीहत का खुमार है, ध्यान यहाँ सोना-चांदी
विश्वासों की छत नीचे सोई रिश्तों की आबादी
दुनिया रंगमंच दुनिया सागर दुनिया संग्राम है
दुनिया सुख-दुख की प्रहेलिका मग का एक मुकाम है
लेकिन दुनिया पर दुनियादारों को पूरा नाज है ॥५॥
का उल्लेख क्यों किया जानने के लिए सुनें