कविता मन का विश्वास भाव की भाषा है
हारे मानस की आस प्राण परिभाषा है
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 21 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२७२ वां* सार -संक्षेप
आइये प्रवेश करें आज की वेला में
जब भी हम ऊहापोह में हों तो हमें मानस ग्रंथ का आश्रय लेना चाहिए जो हमें अनुभूति कराता है कि हम तत्त्व शक्ति विश्वास सब कुछ हैं यह हमें सही राह दिखाता है
अध्यात्म सदैव शौर्य से प्रमंडित हो यह सिद्ध कराता है इसके प्रसंगों को हम पढ़ें अपने भीतर प्रवेश कराएं निश्चित रूप से यह हमारा सहारा बन जाएगा राम का अद्भुत स्वरूप सामने आ जाता है अपने अंदर रामत्व का प्रवेश कराएं जो कर्म का आदर्श है भावार्णव है सेवा का एक विलक्षण उदाहरण है
मानस में अयोध्या कांड का एक प्रसंग है संपूर्ण विश्व में रमे भगवान् राम वन की ओर चल पड़े हैं
सुमन्त लौट चुके हैं अब वे भारत के सौन्दर्य को वृद्धिङ्गत करने वाले जयस्वी तपस्वी तेजस्वी उद्भट विद्वान् आदिकवि वाल्मीकि आश्रम पहुंचने वाले हैं
देखत बन सर सैल सुहाए। बालमीकि आश्रम प्रभु आए॥
राम दीख मुनि बासु सुहावन। सुंदर गिरि काननु जलु पावन॥3॥
सुंदर वन,सरोवर एवं पर्वत का अवलोकन कर प्रभु श्री राम वाल्मीकि जी के आश्रम में पहुंच गए और देखा कि मुनि का निवास स्थान बहुत सुंदर है, जहाँ सुंदर पर्वत, वन और पवित्र जल है
सरोवरों में कमल और वनों में वृक्ष फूल रहे हैं मकरन्द रस में मस्त हुए भौंरे सुंदर गुंजार कर रहे हैं। पक्षी और पशु कोलाहल कर रहे हैं और वैररहित प्रसन्न मन से विचरण कर रहे हैं
यह देख प्रभु राम प्रसन्न हो गए उनके आगमन की सूचना पाकर मुनि वाल्मीकि जी उन्हें लेने के लिए आगे आए सन्त के सामने भगवान् लेट गए सम्मानपूर्वक मुनि उन्हें आश्रम में ले आए
वाल्मीकि जी ने मधुर कंद, मूल और फल मँगवाए। मां सीता, लक्ष्मण और प्रभु राम ने फल ग्रहण किए तब मुनि ने विश्राम करने के लिए उन्हें स्थान बता दिया
फिर मुनि की भगवान् से वार्ता हुई उन्होंने वनगमन का कारण बताया अन्त में
अस जियँ जानि कहिअ सोइ ठाऊँ। सिय सौमित्रि सहित जहँ जाऊँ॥
तहँ रचि रुचिर परन तृन साला। बासु करौं कछु काल कृपाला॥3॥
भगवान् ने उनसे पूछा कि ऐसा स्थान बतलाइए जहाँ मैं लक्ष्मण और सीता सहित जाऊँ और वहाँ सुंदर पर्णकुटी बनाकर कुछ समय निवास कर सकूं
वाल्मीकि बोले- धन्य! धन्य! हे रघुकुल के ध्वजास्वरूप! आप ऐसा क्यों न कहेंगे? आप सदैव वेद की मर्यादा की रक्षा करते रहे हैं जानकी जी माया हैं, जो कृपा के भंडार आपका रुख पाकर जगत का सृजन, पालन और संहार करती हैं। जो हजार मस्तक वाले सर्पों के स्वामी हैं पृथ्वी को अपने सिर पर धारण किए हैं, वही चर-अचर के स्वामी शेषजी लक्ष्मण हैं। देवताओं के कार्यहेतु आप राजा का रूप धारण करके दुष्ट राक्षसों की सेना का नाश करने के लिए चले हैं
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने आगामी कविगोष्ठी जिसका उद्देश्य यह है कि हमारे आचरण में परिवर्तन आए की चर्चा की
आचार्य जी ने परामर्श दिया
यह कविगोष्ठी वर्तमान रूढ़िबद्ध नियमों से हटकर सर्वप्रथम एक प्रेरक,उद्देश्य पूर्ण भूमिका के साथ प्रारम्भ की जानी चाहिए, ताकि इसके महत्व को सुधी श्रोतागण समझें । मात्र मनोरंजन तक हम सीमित न रहें।
और आचार्य जी ने भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी जी का नाम क्यों लिया बैरिस्टर साहब का कवि सम्मेलन से क्या जुड़ाव रहा अर्चन पूजन भजन क्या हैं जानने के लिए सुनें