ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।4.24।।
ब्रह्मरूप कर्म में समाधिस्थ व्यक्ति का गन्तव्य भी ब्रह्म ही है
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 22 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२७३ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी जो हमारे मां पिता और मार्गदर्शक के रूप में हैं नित्य हमें प्रबोधित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है
हम शुद्ध रूप में आते हैं और माया की वजह से सांसारिकता के कारण अशुद्ध हो जाते हैं प्रातःकाल की इन सदाचार वेलाओं का उद्देश्य है कि हम अपने को पहचानें
त्रैगुण्यविषया वेदा निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।
निर्द्वन्द्वो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान्।।2.45।।
हे अर्जुन तीनों गुणों से रहित , निर्द्वन्द्व , निरन्तर नित्य वस्तु परमात्मा में स्थित हो जाओ ,योगक्षेम की कामना भी न रखो और परमात्मपरायण हो जाओ ।
हम भी प्रभु से यह वरदान मांगे कि शरीर हमारा साथ देता रहे और मन शांत संयत रहे चुनौतियों से डरें नहीं अपने देश के अतीत को भी न भूलें कि विषम परिस्थितियों के कारण भी हम मिटे नहीं इससे हमें शक्ति मिलेगी चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् की अनुभूति करें
ज्ञान ध्यान जो भी करें अपने समाज के लिए अपने देश भारतवर्ष के लिए करें देश और समाज परिवार रूप में हमें लगे यह प्रयास करें
विश्व में भारतवर्ष एकमात्र ऐसा देश है जो परिवार के आधार पर ही अपने पल्लवन की अनुभूति करता है और परिवार के भाव को विस्तार प्रदान करते हुए ही कहता है
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। · उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
यह भारतीय चिन्तन है हम भी ऐसा ही अनुभव करें कि हमारे परिवार वाले सब अपने ही हैं उनमें कमियां तो रहेंगी ही जैसे हमारे अन्दर रहती हैं
यदृच्छालाभसन्तुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते।।4.22।।
जो कर्मयोगी फल की इच्छा से रहित होकर अपने आप जो कुछ मिल जाय, उसमें ही सन्तुष्टि की अनुभूति करता रहता है और जो ईर्ष्या से रहित(लालच न करें ), द्वन्द्वों से अतीत तथा सिद्धि और असिद्धि दोनों में समान अवस्था में रहता है, वह कर्म करते हुए भी उससे नहीं बँधता।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मलय चतुर्वेदी जी और भैया शीलेन्द्र जी का उल्लेख क्यों किया मालवीय जी का नाम क्यों आया जानने के लिए सुनें