23.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष नवमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 23 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७४ वां* सार -संक्षेप

 पुलक गात हियँ सिय रघुबीरू। जीह नामु जप लोचन नीरू॥

लखन राम सिय कानन बसहीं। भरतु भवन बसि तप तनु कसहीं॥1

गात्र अर्थात् शरीर पुलकित है, हृदय में सीता राम हैं। जीभ राम नाम जप रही है, नेत्रों में प्रेम का जल  है। लक्ष्मण,सीता और प्रभु राम तो वन में बसते हैं, परन्तु भक्त भरत जो सब प्रकार से सराहने योग्य हैं जिनके व्रत और नियमों को सुनकर साधु-संत भी सकुचा जाते हैं जिनकी स्थिति देखकर मुनिराज भी लज्जित होते है,

 घर ही में रहकर तप के द्वारा शरीर को कस रहे हैं

प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष नवमी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 23 जनवरी 2025 (पराक्रम दिवस )का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७४ वां* सार -संक्षेप

ये सदाचार संप्रेषण अद्भुत है गम्भीर पारगामी विद्वान् आचार्य जी नित्य हमें उत्साहित प्रबोधित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है इन संबोधनों को सुनकर हमें शक्ति मिलती है संसार में रहने का उत्साह आता है 


भक्ति और ज्ञान के कई प्रसंग गीता, मानस, अन्य ग्रंथों में आये हैं मानस तो एक अद्भुत ग्रंथ है आइये इसमें प्रवेश करें 

काहु न कोउ सुख दु:ख कर दाता। निज कृत करम भोग सबु भ्राता॥2॥


 लक्ष्मण जो स्वयं ज्ञान, वैराग्य और भक्ति से परिपूर्ण हैं मधुर कोमल वाणी द्वारा कहते हैं - हे  निषादराज भाई! कोई किसी को सुख-दुःख का देने वाला नहीं है। सब अपने ही किए हुए कर्मों का फल भोगते हैं

यह अयोध्या कांड का प्रसंग है इसके बाद

अरण्य कांड प्रारम्भ हो जाता है स्फटिक शिला वाला जयन्त का प्रसंग है प्रभु राम जो कह चुके हैं 

जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा। तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा॥

अंसन्ह सहित मनुज अवतारा। लेहउँ दिनकर बंस उदारा॥


हे मुनि, सिद्ध और देवताओं के स्वामियों ! डरो मत। तुम्हारे लिए मैं मनुष्य का रूप धारण करूँगा और पवित्र सूर्यवंश में अंशों सहित मनुष्य का अवतार लूँगा,

 सीता और लक्ष्मण ऋषि अत्रि के आश्रम पहुंचते हैं 

इसके बाद पंचवटी पहुंच जाते हैं जो अत्यन्त आनन्ददायक है

वही ज्ञानवान् भक्त लक्ष्मण कहते हैं 

सुर नर मुनि सचराचर साईं। मैं पूछउँ निज प्रभु की नाईं॥3॥


एक बार प्रभु श्री राम  सुखपूर्वक बैठे हुए थे। उस समय शेषावतार लक्ष्मण ने शेष पर शयन करने वाले भगवान् से सरल वचन कहे- हे सुर , मनुष्य, मुनि चर अचर सभी के स्वामी! मैं अपने प्रभु  जैसा आपको मानकर आपसे पूछता हूँ

(भगवान् राम जो समझाते हैं वही राम -गीता है )


ज्ञान, वैराग्य और माया का वर्णन कीजिए और उस भक्ति को कहिए, जिसके कारण आप दया करते हैं


ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ।

जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ॥14॥

मूल प्रश्न है  अंश और अंशी का भेद क्या है अंशी अर्थात् ईश्वर जिसके पास सब कुछ है और जीव जो उसका अंश  है  उसके पास भी सब कुछ है लेकिन वह जान नहीं पाता


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सपन कुमार के पिता जी श्री सुभाष चन्द्र दुबे जी की चर्चा क्यों की भैया पुनीत जी भैया पंकज जी आदि का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें