27.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का माघ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 27 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२७८ वां* सार -संक्षेप

 यह क्या मधुर स्वप्न-सी झिलमिल


सदय हृदय में अधिक अधीर,


व्याकुलता सी व्यक्त हो रही


आशा बनकर प्राण समीर।



यह कितनी स्पृहणीय बन गई


मधुर जागरण सी-छविमान,


स्मिति की लहरों-सी उठती है


नाच रही ज्यों मधुमय तान।

( आशा,कामायनी )


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी तिथि विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 27 जनवरी 2025 का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२७८ वां* सार -संक्षेप



परिस्थितियां विषम हैं तथापि इत्थम्भूत आचार्य जी नित्य हमें प्रेरित उत्साहित उत्थित करते हैं यह हमारा सौभाग्य है हमसे अत्यन्त लगाव के कारण आचार्य जी प्रयास करते हैं कि  भगवान् के अंश हम बुद्धि,विचार, चैतन्य, शक्ति और भक्ति से भली प्रकार से पूरित रहें हम अनुभव करें कि हमारे भीतर कुछ न कुछ विशेषता है 

(यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा।


तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।)

हम एक उदाहरण बन सकें 

*पथ आप प्रशस्त करो अपना*

हमारे माध्यम से समाज और देश से लगाव के कारण भी ऐसा है ताकि समाज और देश 


(जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ

फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ)


 चैतन्य जाग्रत सत् असत् में भेद करने में सक्षम रहे


आचार्य जी इन दिनों भक्ति,जो 

उत्पन्ना द्रविडे साहं वृद्धिं कर्नाटके गता ।

क्वचित् क्वचित् महाराष्ट्रे गुर्जरे जीर्णतां गता ॥

भागवत पुराण १३/१/४८ है ,


 पर चर्चा कर रहे हैं भक्ति में भी निर्भरा भक्ति विशेष है 

भक्ति भाव में डूबे तुलसीदास जी कहते हैं 

नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये

सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा।

भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे

कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च॥ 2॥


हे प्रभु राम जी! आपकी अद्भुतता का मैं एक भाग यह सत्य कहता हूं और वैसे तो आप सब जानते ही हैं कि मेरे हृदय में दूसरी कोई  इच्छा नहीं है। आप मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को षड्विकारों से दूर कीजिए


नारदभक्तिसूत्र में भक्ति अमृतस्वरूप कही गई है जिसे भी यह प्राप्त हो जाए वह अमर हो जाता है व्यासपूजा में अनुराग ही भक्ति है गर्गाचार्य के अनुसार कथा- श्रवण में अनुरक्ति ही भक्ति है

जिन व्यक्तियों को देशभक्ति की लगन लग गई उन्होंने प्राणों को कुछ नहीं समझा जैसे पं दीनदयाल जी ने देश के उत्कर्ष के लिए देशभक्ति में रमने डूबने के कारण न अपना career देखा न खाने पीने पर ध्यान दिया उनमें भक्ति का अद्भुत भाव जगा 

आचार्य जी परामर्श दे रहे हैं कि हम निराश न रहें 


नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो


जग में रह कर कुछ नाम करो

यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो


समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो

कुछ तो उपयुक्त करो तन को


नर हो, न निराश करो मन को

इसके अतिरिक्त अपनी जीवनचर्या हम कैसी बनाएं जानने के लिए सुनें