ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा । यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि (मौनी अमावस्या ) विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 29 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२८० वां* सार -संक्षेप
आज मौनी अमावस्या के दिन
हमारे हर कार्य व्यवहार में राम का रामत्व,जो भारत का तत्त्व है, प्रविष्ट हो भा में रत भारत के हम भक्त शौर्य प्रमंडित अध्यात्म की अनुभूति करें भारत का बोझा माथे पर लें सदाचरण के मार्ग पर चलें विभूतिमत्ता का हमें अहसास हो अर्थात्
अपने मनुष्यत्व में ईश्वरत्व का प्रवेश कराएं आचार्य जी जो हमारे स्वरूपों में भारत के दर्शन करते हैं हमसे इनकी अपेक्षा कर रहे हैं
अद्भुत है यह संसार जहां विकार हैं समस्याएं हैं तो विचार भी हैं व्यवहार भी हैं समाधान भी हैं हम यह अनुभव करें कि अंशी के हम अविनाशी अंश किसी भी समस्या का समाधान करने में सक्षम हैं हम गर्व करें कि देश और समाज के लिए जीने वाले हम उस देश में जन्मे हैं जहां का मूल मन्त्र है अविनाशी अनन्त सनातन धर्म
जहां शिवा जी गुरु गोविन्द सिंह महाराणा प्रताप आदि इसके रक्षक रहे हैं
हमें अपने को अपने रिश्ते नातों को सुरक्षित करने के लिए संगठन के महत्त्व को समझना ही होगा अपनी शक्ति का संवर्धन भी करना होगा हम शक्ति की अनुभूति करें जैसी विषम परिस्थितियों से घिरे भारत की दुर्दश देख गोस्वामी राष्ट्र -भक्त तुलसीदास ने की तभी उन्हें वे राम प्रिय थे जो धनुष बाण हाथ में लिए हों
का बरनउ छवि आपकी भले बने हो नाथ। तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण लेउ हाथ।।”
राम हर स्थान पर रमे हैं
राम-नाम-मनि-दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
‘तुलसी’ भीतर बाहिरौ, जौ चाहसि उजियार॥
किसी भी विकट से विकट परिस्थिति में भी राम निराश हताश नहीं हुए उन परिस्थितियों का वे शमन संयमन करते रहे और परिस्थितियां उन्हें अपने लक्ष्य से डिगा नहीं सकीं
इसके अतिरिक्त भैया नीरज जी और आचार्य जी का दाढ़ी वाला कौन सा प्रसंग था भाव -स्नान क्या है कवि -गोष्ठी का उल्लेख क्यों हुआ जानने के लिए सुनें