4.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 4 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५५ वां* सार -संक्षेप

 नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।


मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।7.25।।


जो मूढ़ मनुष्य भलीभांति मुझे अजन्मा और अविनाशी नहीं मानते , उन सबके सामने योगमाया से अच्छी तरह से आवृत हुआ मैं प्रकट भी नहीं होता हूं ।


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 4 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५५ वां* सार -संक्षेप


प्रातःकाल का यह समय अद्भुत है जिसमें हम आत्मस्थ होने की चेष्टा करें मन बुद्धि चित्त अहंकार पंचमहाभूत से बने शरीर


(शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्' यदि आपका शरीर स्वस्थ है तो धर्म के सभी साधन स्वयं क्रमवार सफल होते चले जाएंगे इसके लिए उचित खानपान आवश्यक है सही समय पर जागरण और शयन आवश्यक है परिवार समाज से उचित व्यवहार आवश्यक है )


 को धारण कर हम मनुष्य बने हैं इस मनुष्य का एक उद्देश्य होता है और वह उद्देश्य है मनुष्यत्व की अनुभूति और उस अनुभूति के पश्चात् उसकी अभिव्यक्ति 

अन्यथा संसार का जो आवरण लगा रहता है उससे सत्य का मुख दिखाई नहीं देता और भोग की कोई सीमा नहीं है

हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्‌।

तत् त्वं पूषन्नपावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ॥

 हमें सत्य का साक्षात्कार करना है सनातन धर्न हमें इसी दिशा की ओर ले जाता है  जब हमें सनातन धर्न समझ में आ जाता है तो हमारा कार्य व्यवहार चरित्र आचरण भद्र जनों को बहुत आकर्षित करता है


इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने शिक्षा की विकृति पर चर्चा की 

आचार्य जी ने स्पष्ट किया यदि हम कार्यक्रम अपने चैतन्य को जाग्रत करने के लिए करते हैं तो प्रचार स्वयमेव मिलता है इसी कारण किसी भी कार्यक्रम में आत्मस्थता अत्यन्त आवश्यक है


भैया नीरज अग्रवाल जी १९८५ बैच के,भैया पंकज जी का नाम क्यों लिया

कल होने वाली बैठक में हमें और क्या चर्चा करनी चाहिए 

शिक्षा स्वास्थ्य स्वावलम्बन सुरक्षा के लिए हमें क्या करना चाहिए जानने के लिए सुनें