अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका। पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज माघ शुक्ल पक्ष द्वितीया विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 31 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२८२ वां* सार -संक्षेप
अद्भुत गुरुत्व के धनी आचार्य जी दीर्घकाल से हमें जाग्रत उत्थित उत्साहित करते आ रहे हैं हमें कर्मानुरागी बनाने का प्रयास करते आ रहे हैं यह हमारा सौभाग्य है
आचार्य जी चाहते हैं कि हम भगवान् की कृपा -छाया का आनन्द लें हम उस रामत्व की अनुभूति करें जिससे हमारी भारत माता स्वस्थ व प्रसन्न रह सकें हम अपने भीतर भारत रूपी मन्दिर का अनुभव करें हम कर्मफल का आश्रय न लेकर कर्तव्य-कर्म करने में ध्यान दें
गीता में एक श्लोक है
योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।
एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थितिं स्थिराम्।। ६/३३
जब तक मन के चाञ्चल्य का नाश नहीं होगा, तब तक ध्यानयोग सिद्ध नहीं होगा और ध्यानयोग सिद्ध हुए बिना समता की प्राप्ति नहीं हो सकती
हमारे मन जिन्हें आनन्द को भोगने का अभ्यास हो जाता है उन्हें अभ्यास और वैराग्य से वश में कर सकते हैं यदि क्षणांश में ही सही वैराग्य का अनुभव हो जाए तो यह अत्यन्त लाभकारी है
किसी भी विषय का या कार्य का अभ्यास एक अत्यन्त गहन गम्भीर विषय है जिस प्रकार की परिस्थितियां हैं उन्हें देखते हुए हमें राष्ट्र के जाग्रत पुरोहित बनना है हमें इसी का अभ्यास करना है हमें उस अध्यात्म का आश्रय लेना है जो शौर्य से प्रमंडित हो अपनों की रक्षा के लिए कृतसंकल्प होना है भारत पर कुदृष्टि रखने वाली दुरात्माओं से सचेत रहना है
जो रचे यहाँ आतंकी रचना,
भेंट मौत के चढ़ाएंगे,
सोने की चिड़िया भारत माँ हो,
ऐसा स्वप्न सजाएंगे,
कोटि कोटि हिन्दुजन का,
हम ज्वार उठा कर मानेंगे,
सौगंध राम की खाते हैं,
भारत को भव्य बनाएंगे,
भारत को भव्य बनाएंगे।।
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया मनीष कृष्णा जी को क्या परामर्श दिया साइकिल वाला क्या प्रसंग है आचार्य जी ने मां सीता और भारत माता की तुलना किस तरह की जानने के लिए सुनें