6.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 6 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५७ वां* सार -संक्षेप

 भारत ने शौर्य शक्ति विक्रम को भाषा दी 

म्रियमाण जगत् को प्राणों की परिभाषा दी


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 6 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५७ वां* सार -संक्षेप


हम भोग में मग्न न हों हमारे भाव नष्ट न हों हम यशस्वी तपस्वी जयस्वी बनें आचार्य जी इसी का प्रयास करते हैं 

वे अपेक्षा करते हैं कि हम शिक्षक के रूप में अपनी भूमिका को पहचानते हुए अपने अन्दर का तेज जाग्रत करें जिसके लिए चिन्तन मनन के साथ कार्यान्वयन आवश्यक है प्रातः जागरण खाद्याखाद्य विवेक नितान्त आवश्यक है आत्मबोधोत्सव मनाने का प्रयास करें आत्मप्रकाशन का अपना महत्त्व है हम धनार्जन में ही लगे रहेंगे तो इससे हमारा कल्याण नहीं होगा सांसारिक भाव से मुक्त होने पर भाव आयेगा चिदानन्द रूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

हमें जाग्रत होने की आवश्यकता है हम संगठन मन्त्र के जापकों को अपने वास्तविक इतिहास भूगोल को जानना चाहिए हमें अपने धर्म भाषा की विशेषता को समझना चाहिए हम भारत, जो क्षरणशीलता का अक्षर विधान है




अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्लेद्योऽशोष्य एव च।


नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः।।2.24।।


,को पहचानने की चेष्टा करें भारत, जिसने संसार को मुधा अर्थात् मिथ्या माना है,की भूमि तपस्या शुचिता की प्रतीक है यह भोगभूमि नहीं है 

हमें अपनी मातृभूमि से लगाव होना ही चाहिए जैसा रामनरेश त्रिपाठी अपनी कविता स्वदेश गौरव में कहते हैं 


विषुवत-रेखा का वासी जो

जीता है नित हाँफ-हाँफ कर


रखता है अनुराग अलौकिक

वह भी अपनी मातृभूमि पर


ध्रुव-वासी जो हिम में तम में

जी लेता है काँप-काँप कर


वह भी अपनी मातृभूमि पर

कर देता है प्राण निछावर।


आचार्य जी ने स्वरचित  अत्यन्त प्रेरक दो कविताएं सुनाईं 

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने चीन के युद्ध की चर्चा क्यों की भैया पंकज जी का उल्लेख क्यों हुआ  पूर्वजन्म के कर्मों का संग्रह क्या करता है   जानने के लिए सुनें

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