त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत् ॥
प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष अष्टमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 7 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण
*१२५८ वां* सार -संक्षेप
आचार्य जी, जिनका संस्पर्श मात्र ही अत्यन्त सुखदायक है और जिनकी वाणी का स्वर चेतना प्रदान करता है हमें शक्ति शौर्य पराक्रम भक्ति तप त्याग समर्पण की अनुभूति कराता है,परामर्श दे रहे हैं कि हम आत्माभिव्यक्तियां करें
आत्माभिव्यक्ति /
आत्म -प्रकाशन कि हमें कोई जाने एकोऽहं बहुस्याम् का भाव रखने वाले परमात्मा का एक प्रकाश -बिन्दु है
राष्ट्र -पहरुआ आचार्य जी का कहना है कि हम आत्म जो परमात्म का अंश है का पतन न होने दें
उद्धरेदात्मनाऽऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।।6.5।।
हम भोग नहीं भोग रहे हैं
तरह तरह के दृश्यों रूपों वाले इस संसार में जो अंधकार छाया हुआ है हम उसे दूर करने का बीड़ा उठाए हैं
इसी संघर्ष में हमें आनन्द की अनुभूति भी होती है
जब तक दीपक में तेल तेल में बाती बाती में उजास
तब तक अंधियारे से कोई भी भय कैसा क्यों हो हताश
यह अनुभूति कि
अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्। सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्
अद्भुत है
सनातनधर्मिता पर विश्वास करके हम अपना भय त्यागें आज का युगधर्म शक्ति उपासना है इसे विस्मृत न करें
इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया पंकज जी के किस कार्य की प्रशंसा की ३ फीट ८ इंच के किस अघोरी संन्यासी की चर्चा की विवेकानन्द का उल्लेख क्यों हुआ
जानने के लिए सुनें