8.1.25

आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१ तदनुसार 8 जनवरी 2025 का सदाचार सम्प्रेषण *१२५९ वां* सार -संक्षेप

 उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।

क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ।।

(कठोपनिषद्, अध्याय १, वल्ली ३, मंत्र १४)


प्रस्तुत है आचार्य श्री ओम शङ्कर जी का आज पौष शुक्ल पक्ष नवमी विक्रमी संवत् २०८१  तदनुसार 8 जनवरी 2025  का  सदाचार सम्प्रेषण 

  *१२५९ वां* सार -संक्षेप


ये सदाचार संप्रेषण हमारे ज्ञान -चक्षु खोल देते हैं इनके माध्यम से हमें सद्गुणों का दर्शन होता है हमें इनका श्रवण कर लाभ उठाना चाहिए 

इनके अच्छे तत्त्वों की गवेषणा कर शक्तिउपासक शक्तिसम्पन्न त्यागी  उत्साही अदीर्घसूत्री कृतज्ञ कर्मयोगी राष्ट्रभक्त बनने की चेष्टा करें 

तपस्विता और ऋषित्व के द्वार पर पहुंचने का प्रयत्न करें हम प्रयास करें कि हमारा चैतन्य जाग्रत हो सात्विक संसार के सृजन का भाव लेकर सन्मार्ग पर चलने का संकल्प लें  इष्ट के स्मरण के साथ जागरण और शयन हो यह अभ्यास करें 

आनन्द के अर्णव में तैरने का प्रयास करें कि मैं वही हूं जो परमात्मा है 

संसार और सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हुए हमने अपना लक्ष्य बनाया है वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः

देश और समाज के लिए कुछ कर गुजरने का संकल्प लिया है

  राष्ट्र और समाज के लिए उचित अनुचित का विवेक भी बना रहे इसका प्रयास करते हुए 

बीच बीच में आ रहे अपने उपलक्ष्यों को पूर्ण करते हुए हम अपने लक्ष्य -पथ पर  चलते रहें 

समस्याओं से टकराने के लिए सदैव तैयार रहें और इसके लिए इस कलियुग में संगठित रहना आवश्यक है  हमारा युगभारती संगठन इसी कारण महत्त्वपूर्ण हो जाता है संगठन की भलाई के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य करें अपनों के दोष न देखें अपनों की अच्छाइयों की चर्चा करें 

संगठन से वही संयुत रहते हैं जिनका मानसिक तालमेल संगठन के लोगों से बना रहता है

इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भगवान् शंकराचार्य के किन छंदों को उद्धृत किया जानने के लिए सुनें